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________________ 200 - - - जह कछुनो कईं। कंमुअमाणो दुहं मुण सुखं ॥ मोहे मुझाया थातुर थका तिम काम जे दुःख तेहने सुख क जे मनुष्य। री कहे ॥२॥ मोहनरा मणुस्सा। तह कामदुहं सुहं बिंति ॥॥ साल समान ए काम बे वीष काम तेज सर्प जे नय वीखवं समान पण ए काम । त तेहवी नपमाइं ॥ । सन्नं कामा विसं कामा। कामा आसीविसोवमा॥ ते कामनी प्रार्थना कर अपनोगवे पण अती कामवंबाथी तां थकां। जाइं दुर्गती ॥२॥ __ कामे पडे माणा। अकामा जति दुग्गई॥श्ना वीषयनि वांबा जोतो वाथ पमे संसाररूप समुद्र घोर वा पेक्षा राखतो जे जीव ते। बीहामणामां ॥ विसए अवश्वंता। पमंति संसार सायरे घोरे॥ ने जे जीव वीषय थकी नी तरे वा पार पामे संसाररूप के क्ष वा श्रवंबक ते। तार थकी॥२॥ विसएसु निराविस्का। तरंति संसार कंतारे॥॥ बताया वा उगाया वीषय ने जेणे वीषयनी अपेक्षा न करी ते नी अपेक्षावंत। गया अविघ्नपणे॥ लिमा अवश्खंता। निरावश्खा गया अविग्घेणं || ते कारण माटे प्रवचन वा कामथी नीरापक्षपणे थर्बु कामवं सीदांतनु एज सारके। बा न करवी ॥३०॥ तम्मा पवयण सारे। निरावश्केण होअव्वं ॥३॥ वीषयनी अपेक्षा राखेतो जी वीषयनी अपेक्षा न राखेतो तरे व पमे संसार समुद्रमां। दुस्तर नव योघ समुद्र ॥ -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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