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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ( ७८) लिपिपत्र ४६ वां. यह इसमें वर्तमान कैथी और मैथिल लिपियें पश्चिमोत्तरदेश और बिहार में प्रचलित है. बनी है, और उससे बहुत ही मिलती हुई है. लिखा है सो भी प्राचीन 'अ' से ही बना है. लिखा है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्जकी है. कैथी लिपि लिपि देवनागरीसे ही ' 6 अ ' को ' श्र' जैसा For Private And Personal Use Only , ख' के स्थान पर 'ष मैथिल लिपि बंगला से बहुत मिलती हुई है, जो सेन राजाओंके समयकी प्रचलित लिपिसे बनी है. इसका प्रचार मिथिला देशमें है, जहां के संस्कृत पुस्तक भी इसी लिपिमें लिखे जाते हैं. लिपिपत ४७ वां. इस लिपिपलमें वर्तमान बंगला और उड़िया लिपियें दर्जकी हैं. बंगलाका प्रचार सारे बंगालदेशमें है, और सेन राजाओंके समय के लेखों में, जो लिपि पाई जाती है, उसीसे यह बनी है. उड़िया लिपि उड़ीसा देशकी है, जो लिपिपत २४ वें में दर्ज की ई लिपिसे बनी है. लिपिपत ४८ वां . इस लिपिषत्र में वर्तमान गुजराती और मोड़ी ( महाराष्ट्री ) लिपियें दर्ज की हैं. गुजराती लिपिके बहुतसे अक्षर देवनागरीसे मिलते हुए हैं, बाकी के अक्षरों में से कितनेएक स्वयं प्राचीन अक्षरोंसे बने हैं, और कितनेएक दक्षिणकी लिपियों से लिये हुए हैं. मोडी लिपि महाराष्ट्रदेश में प्रचलित है. इसके भी बहुत से अक्षर तो देवनागरीसे मिलते हैं, और बाकीके दक्षिणकी लिपियोंसे बने हैं. लिपिपत ४९ वां. इसमें वर्तमान द्रविड और कनडी लिपियें लिखी हैं. द्रविड़ लिपि लिपिपत्र ३६ में दर्ज की हुई 'प्राचीन ग्रन्थ लिपि' से बनी है, और लिपिपत्र ३७ वें की लिपिसे कनडी बनी है. लिपिपत ५० वां.. इसमें वर्तमान तुलु और तामिळ लिपियें हैं. तुळु लिपि भी द्रविड़ लिपिकी नाई लिपिपत ३६ वें की 'प्राचीन ग्रन्थ लिपि' से बनी है, और लिपिपत्र ३९ वें की लिपि तामिळ बनी है.
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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