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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६८) दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर: ई शुभमस्तु शकाब्दा : ११६५ ॥ देवि प्रातरवेहि नन्दनवनान्मन्दः कदम्बानिलो वाति व्यस्तकरः शशीति कतकेनालाप्य कौतुहली। तत्कालस्खलदङभङिमचलामालिङच लक्ष्मी बलादालोलानवविम्व (बिम्ब)चुम्ब(म्ब)नपर : प्रीणातु दामोदर : ॥ अम्भोजश्रीहरणपिशुन : प्रेमभू : कैरवाणां लिपिपत्र २४ वा. यह लिपिपत्र उड़ीसाके राजा पुरुषोत्तमदेवके दानपत्रकी छापसे (१) तय्यार किया है. उक्त दानपत्र में पुरुषोत्तमदेवका राज्याभिषेक वर्ष ५ लिखा है. उक्त राजाका राज्याभिषेक ई० सन् १४७८ में हुआ था, इस. लिये इस दानपत्रका समय वि० सं० १५४० आता है. इसी लिपिसे प्रचलित उड़िया लिपि बनी है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः___श्री जय दुर्गायै नमः । वीर श्री गजपति गउडेश्वर नव कोटि कर्नाटकलवर्गेश्वर श्रीपुरुषोत्तमदेव महाराजङ्कर । पोतेश्वर भटङ्कु दान शासन पटा । ए ५ अङ्क मेष दि १० अं सोमवार ग्रहणकाले गङ्गागर्भ पुरुषो (२) लिपिपत २५ वां. यह लिपिपत्र मौर्य राजा अशोकके शहषाज गिरिपरके गांधार लिपिके लेखकी छापसे तय्यार किया है. इस लिपिमें 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऐ' और 'औ', तथा उनके चिन्ह नहीं हैं. 'इ' का चिन्ह तिरछी लकीर है, जो व्यंजनको काटती हुई आधी ऊपर और आधी नीचे रहती है ( देखो कि, ति, लि, मि). 'उ' का चिन्ह एक छोटीसी आडी लकीर है, जो व्यंजनकी बाई ओर नीचेको लगाई जाती है ( देखो गु, तु, हु), और कभी कभी उक्त लकीरको घुमाकर गांठ भी पनादेते हैं (देखो जु). 'ए' का चिन्ह एक छोटीसी खड़ी, आड़ी या तिरछी लकीर है, जो बहुधा - (१) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द १, पष्ठ ३५४ के पासको प्रेट). (२) इस दानपत्रको भाषा संस्कृत मिमित उड़िया है, इसलिये भन्द छट छट रख हैं, For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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