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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (विक्रम संवत् ६२८ ) के दानपत्रकी छापसे (१) तय्यार किया है. इसमें ख, ङ, अ, ड और ब की आकृतिमें कुछ फर्क है, और जिह्वामूलीयका चिन्ह 'म' जैसा है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर: स्वस्ति वलभि(भी)त : प्रसभप्रणतामित्राणांमैत्रकाणामतुलबलस(सं)पन्नमण्डलाभोगसंसक्तसंप्रहारशतलब्धप्रताएः प्रतापः प्रतापोपनतदानमानार्जवोपार्जितानुरागो(गा)नुरक्तमौलभूतमित्रश्रेणीबलावाप्तराज्यश्रिः (श्रीः) परमम(मा)हेश्वर : श्रि(श्री)सेनापतिभटार्कस्तस्य सुतस्तत्पादरजोरुणावनतपवित्रि(त्री कृतशिरा : शिरोवनतशत्रुचडामणिप्रभाविच्छुरितपादनवपंक्तिदि(दी)धितिदि(ही)नानाथरूपणजनोप ___ लिपिपत्र ११ वा. यह लिपिपत्र उदयपुर के विक्टोरिया हॉलके प्राचीन लेख संग्रहमें रक्खे हुए मेवाड़के गुहिल राजा अपराजितके समयके [विक्रम संवत् ७१८ के लेखसे तय्यार किया है. इसमें आ, इ और ई, के चिन्ह कहीं कहीं भिन्न ही प्रकारसे लगाये हैं (देखो ना, ला, धि, री, ही ). लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः राजाश्रीगुहिलान्वयामलपयोराशौ स्फुरदीधितिध्वस्तध्वान्तसमूहदुष्टसकलव्यालावलेपान्तकृत् । श्रीमानित्यपराजित : क्षितिभृतामभ्यर्चितोभूर्धभि (भि)त्तिस्वच्छतयेव कौस्तुभमणिर्जातो जगद्भूषणं ॥ शिवात्मजो खण्डितशक्तिसंपद्धर्य : समाक्रान्तभुजङ्गशत्रुः] । तेनेन्द्रवस्कन्द इव प्रणेता । वृतो महाराजवराहसिंह : जनगृहीतमपिक्षयवर्जितं धवलमप्यनुरन्जित लिपिपत्र १२ वा. यह लिपिपत्र राजा दुर्गगणके समयके झालरापाटनके लेखकी छापसे (२) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र ११ वें से अधिक (१) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द, ८, पृष्ठ ३०२ के पासको प्लेट ). (२) इण्डियन एण्टिक्वरी (जिल्द ५, पृष्ठ १८०-८१ के बीचको प्लेट). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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