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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org (५१) १२ वीं या १३ वीं शताब्दी तक प्राचीन क्रमसे अक्षर लिखनेका प्रचार रहा, तथापि उन्हीं पुस्तकों से पाया जाता है, कि उस समय केवल "मक्षिका स्थाने मक्षिका " की नांई प्राचीन पुस्तकोंके अनुसार नकल करते थे, परन्तु प्राचीन कमको सर्वथा भूले हुए थे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषके ग्रन्थोंकी पथ रचना में बहुत से अंक एकल लानेमें कठिनता रहती है, जिसको दूर करनेके निमित्त ज्योतिषियोंने कितने एक अंकों के लिये निम्नलिखित सांकेतिक शब्द नियत किये: ० = ख, गगन, आकाश, अंबर, अभ्र, वियत्, व्योम, अंतरिक्ष, नभ, शून्य, पूर्ण, रंध्र आदि. १ = आदि, शशी, इन्दु, विधु, चन्द्र, शीतांशु, सोम, शशाक, सुधांशु, अब्ज, भू, भूमि, क्षिति, धरा, उर्वरा, गो, वसुंधरा, पृथ्वी, क्ष्मा, धरणी, वसुधा, कु, इला आदि. २ = यम, यमल, अश्विन, नासत्य, दस्र, लोचन, नेत्र, अक्षि, दृष्टि, चक्षु, नयन, ईक्षण, पक्ष, बाहु, कर, कर्ण, कुच, ओष्ट, गुल्फ, जानु, जंघ, द्वय, द्वंद्व, युगल, युग्म, अयन आदि. ३= राम, गुण, लोक, भुवन, काल, अग्नि, वन्हि, पावक, वैश्वानर, दहन, तपन, हुताशन, ज्वलन, शिखी, कृशानु आदि. ४ = वेद, श्रुति, समुद्र, सागर, अब्धि, जलनिधि, अंबुधि, केंद्र, वर्ण, आश्रम, युग, सूर्य, कृत आदि. ५= बाण, शर, सायक, इषु, भूत, पर्व, प्राण, पांडव, अर्थ, महाभूत, तत्व, इन्द्रिय आदि. ६ = रस, अंग, ऋतु, दर्शन, राग, अरि, शास्त्र, तर्क, कारक आदि. ७ = मग, अग, भूभृत्, पर्वत, शैल, अद्रि, गिरि, ऋषि, मुनि, वार, स्वर, धातु, अश्व, तुरग, वाजि आदि. ८ = वसु, अहि, गज, नाग, दंति, दिग्गज, हस्ती, मातंग, कुंजर, द्विप, सर्प, तक्ष, सिद्धि आदि. ९ = नन्द, अंक, निधि, ग्रह, रन्ध्र, द्वार, गो आदि. १० = अंगुलि, दिशा, आशा, दिकू, पंक्ति, ककुप् आदि. १३ = विश्वेदेवा. ११ = रुद्र, ईश्वर, हर, ईश, भव, भर्ग, शूली, महादेव, आदि. १२ = अर्क, राधे, सूर्य, मार्तंड, थुमणि, भानु, दिवाकर, मास, राशि, आदि. १४ = मनु, विद्या, इन्द्र, शक्र, लोक, आदि. For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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