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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) प्राचीन लेख और दानपत्रोंके संवत् (१). भारतवर्षके प्राचीन लेख और दानपत्रों में विक्रम संवत्, शक संवत्, गुप्त संवत् आदि नामके कई संवत् पाये जाते हैं, जिनके प्रारंभ आदिका हाल संक्षेपसे यहां लिखाजाता है. ___सप्तर्षि संवत्-इसको लौकिक काल, लौकिक संवत्, शास्त्र संवत्, पहाड़ी संवत् , या कच्चा संवत् भी कहते हैं. यह संवत् २७०० वर्षका एक चक्र है. इसके विषयमें ऐसा मानाजाता है, कि सप्तर्षि नामके ७ तारे अश्विनीसे रेवती पर्यंत २७ नक्षत्रोंपर क्रम क्रमसे सौ सौ वर्षतक रहते हैं (२). इस प्रकार २७०० वर्ष में एक चक्र पूरा होकर दूसरे चक्र का आरंभ होता है. जहां जहां यह संवत् प्रचलित है, वहां नक्षत्रका नाम नहीं लिखा जाता, परन्तु केवल १ से लगाकर १०० तकके वर्ष लिखे जाते हैं. १०० वर्ष पूरे होने पर शताब्दीका अंक छोड़कर फिर से प्रारंभ करते हैं. कश्मीरके पंचांग और कितनेएक पुस्तकों में प्रारंभसे भी वर्ष लिखे हुए मिलते हैं. कश्मीरमें इस संवत्का प्रारंभ कलियुगके २५ वर्ष पूरे होनेपर (२६ वें वर्षसे ) मानते (३) हैं, परन्तु पुराण और ज्योतिषके ग्रन्थोंसे इसका प्रचार कलियुगके पहिलेसे होना पाया जाता है. जेनरल कनि (१) “ संवत्" संवत्सर प्रब्दका संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ वर्ष है. इस शब्दको बहुधा विक्रम संवत् बतलानेवाला मानते हैं, परन्तु वास्तवमें ऐसाही नहीं है. यह शब्द महर्षि सवत्, विक्रम संवत्, गुप्त सवत् आदिमेंसे हरएक संवत्के लिये आता है, कभी कभी विक्रम, शक, वल्लभी आदि ५०द भी “ संवत्" के पहिले लिखे हुए पायेजाते हैं (विक्रम सवत्, वल्लभी सवत् आदि), परन्तु बहुधा केवल " संवत्" या उसका संक्षिप्त रूप “स” लिखा हुआ मिलता है, इसके स्थान में वर्ष, अन्द, शक आदि इसी अर्थ वाले . मम्द भी पाते हैं. (२) एकैस्मिन्नूक्ष पतं पूतं ते ( मुनयः ) चरन्ति वर्षाणाम् ( वाराही सहिता, अध्याय १३, भोक ४). सप्तर्षीणांतुयो पूर्वी दृश्यते उदितौ दिवि । तयोस्तु मध्ये नक्षत्र दृश्यते यत्सम निशि ॥ तेनेत ऋषयो युक्ता स्तिष्टं पर शत नृणाम् ( श्रीमद्भागवत, स्कंध १२, अध्याय २, श्लोक २७-२८. विष्णुपुराण, अश ४, अध्याय २४, श्लोक ५३-५४). पुराण और ज्योतिषके कितनेएक ग्रन्थोंमें इस प्रकारको गति होना लिखा है, परन्तु कमलाकर भट्ट इस बातको नहीं मानते ( अद्यापि कैरपिनरेगतिरार्य व ष्टा न यात्र कथिता किल सहितास । तत्काव्यमेव हि पुराणवदत्र तकशास्तमेव तत्व विषय गदितु प्रवृत्ताः ॥ सिद्धान्ततत्व विवेक, भग्रहयुत्यधिकार, श्लोक ३२). (३ ) कलेगते : सायकनेत्र ( २५ ) वर्षे : सप्तर्षि वस्ति दिव प्रयाताः । लोके हि संवत्सरपत्रिकायां सप्तर्षिमान प्रवदन्ति सन्तः ( डाक्टर बुलरका कश्मीरका रिपोर्ट', पृष्ठ ६० ). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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