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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हजारों वर्षतक नहीं रहसक्त, परन्तु उत्तम प्रकारके पत्थर या धातुपर बुदे हुए अक्षर यत्न पूर्वक रक्खे जावें, तो बहुत वर्षांतक बच सक्ते हैं. भारतवर्ष में सबसे प्राचीन लेख जो आजतक पाये गये हैं, वे चबान और पाषाण के स्तम्भोंपर खुदी हुई मौर्य वंशी राजा अशोक (प्रियदर्शी) की धर्माज्ञा हैं, जो पेशावरसे माइसौरतक, और काठियावाड़से उड़ीसातक कई एक स्थानों (१) में मिली हैं. अशोक का राज्याभिषेक सन् ई० से .करीबन २६९ वर्ष पहिले हुआ था, और ये धर्माज्ञा राज्याभिषेक होने के पश्चात् १३ वें वर्ष से २८ वें वर्ष के बीच समय समय पर लिखी गई थीं. शहबाजगिरि और मान्सेराकी धर्माज्ञा गांधार लिपिमें खुदी हैं, जो फार्सीकी नाई दाहिनी ओरसे बाई ओरको पढ़ी जाती है। इनके अतिरिक्त सर्वत्र पाली अर्थात् राजा अशोकके समयकी प्रचलित देवनागरी लिपिमें हैं. प्रजाको राजकीय आज्ञाकी सूचनाके निमित्त वर्तमान समयमें जैसे गवर्मेण्ट या राजाओंकी तरफसे भिन्न भिन्न स्थानोंपर इश्तिहार लगाये जाते हैं, वैसेही ये धर्माज्ञा भी हैं, परन्तु चिरस्थायी रखने के लिये वे कठिन पाषाणोंपर खुदवाई गई हैं. उनकी भाषा सर्वत्र एक नहीं, किन्तु वे स्थान स्थानकी प्रचलित देशी (प्राकृत ) भाषामें लिखी गई हैं, जिसका यह कारण होगा, कि हरएक देशकी प्रजा अपनी अपनी मातृ भाषा होनेसे उनको पढ़कर सुगमतासे उन्हें समझ सके, और आज्ञानुसार धर्माचरण करे. इन आज्ञाओं के पढ़नेसे यह भी मालूम होता है, कि देवनागरीकी वर्णमाला उस समय में भी ऐसीही सम्पूर्ण थी, जैसी कि आज है, तो स्पष्ट है कि सन् ई० से करीवन् २५६ वर्ष पहिले भी करीब करीब सारे भारतवर्ष में लिखने पड़ने का प्रचार भली भांति था. . बर्नेल साहिबके निश्चय किये हुए समय और इन लेखोंके समय में केवल १४४ वर्षका अन्तर है. जिस समय एक स्थानसे दूसरे स्थानतक जानेको (१) शहबाजगिरि ( पंजाबके जिले यूसुफजई में ), मान्सेरा (सिन्धु नदीको पूर्व ओर पनाबमें ), खालसी (पश्रिमोत्तर देशके जिले देहरादून में ), दिल्ली, बैराट (रानपूतानहमें), लौरिया अरराज अथवा रधिया, और लौरिया नवन्दगढ़ अथवा मथिया ( चम्पारन जिला ब'गाल में ), रामपुरवा (तराई जिला चम्पारनमें ), बैराट (नयपालकी तहसौल बहादुरगजमें), इलाहाबाद, सहस्राम (बंगालके जिले शाहाबादमें ), रूपनाथ (मध्य प्रदेश के जिले जबलपुरमें), सांची ( मध्य प्रदेशके भोपाल राज्यमें ), गिरनार ( काठियावाड़ में), सोपारा ( बम्बई नगर से ३७ मील उत्तर में ), धौली ( डडीसाके जिले कटकमें ), जोगढ़ ( मद्रास प्रान्तकै गंजाम जिले में ), और माइसौर में ये धर्माज्ञा मिली हैं. For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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