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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) दो या अधिक प्रकारसे लिखा है, वहां केवल पहिलेके ऊपर देवनागरी अक्षर लिख दिया है, जैसा कि लिपिपत्र पहिलेमें 'अ ' दो प्रकारका है, ari पहिले ऊपर देवनागरीका 'अ' लिख दूसरेको खाली छोड़ दिया है. अन्तमें ४ या ५ पंक्तियें जिस लेख ( १ ) या दानपत्र से लिपि तय्यार कीगई है, उसमें से चाहे जहांसे देदी हैं. इन अस्ली पंक्तियोंका नागरी अक्षरान्तर, जहां लिपिपतोंका वर्णन है, कुछ बड़े अक्षरों में छपवा दिया है, जिसमें ऐसा नियम रक्खा है, कि अस्लमें कोई अशुद्धि है, तो उसका शुद्ध रूप ( ) में रख दिया है, और कोई अक्षर छूटगया है, उसको [ ] में लिखदिया है. लिपिपल ३८ और ३९ में प्राचीन तामिळ लिपिकी वर्णमाला मात्र बनादी हैं. लिपिपत ४० में भिन्न भिन्न लेख और दानपत्रोंसे छांटकर ऐसी संख्या दी हैं, जो शब्द और अंक दोनोंमें लिखी हुई मिली हैं. लिपिपत ४१, ४२ व ४३ में प्राचीन अंक, और ४४ से ५० तक में भारतवर्षकी वर्तमान लिपियें दर्ज की हैं. लिपिपत्र ५१ में अशोकके समयकी लिपि क्रम क्रम से परिवर्तन होते हुए वर्तमान देवनागरी लिपिका बनना बतलाया है, और ५२ में कई लेख, दानपत्र और सिक्कोंसे छांटकर कितने. एक अक्षर लिखे हैं, जो लिपिपत १ से ३९ तक में नहीं आये. प्रथम ऐसा विचार था कि ऊपर वर्णन किये हुए प्रसिद्ध प्राचीन राजवंशियोंका संक्षेपसे इतिहास भी इस पुस्तकमें लिखा जाये, परन्तु लिपियों के साथ इतिहासका सम्बन्ध न रहने, और ग्रन्थ बढ़जानेके भयसे भी उसका लिखना उचित नहीं समझा. यदि साधन और समय अनुकूल हुआ, तो इस विषयका एक पृथक् पुस्तक लिखकर सज्जनोंकी सेवा में अर्पण करूंगा. इतिहास प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजाओंकी मुख्य राजधानी उदयपुर नगरमें श्रीमन्महिमहेन्द्र यावदार्यकुलकमल दिवाकर महाराणाजी श्री १०८ श्री फतहसिंहजी धीरवीरकी आज्ञानुसार महामहोपाध्याय कविराज श्री श्यामलदासजीने राजपूताना आदिका 'वीरविनोद' नामका बड़ा इतिहास निर्माण किया, और उक्त इतिहास सम्बन्धी कार्यालयका सेक्रेटरी मुझे नियत किया, जिससे ऐतिहासिक ज्ञान संपादन करनेके उपरान्त प्राचीन लेख पढ़नेका अभ्यास, जो मैंने अपनी जन्मभूमि ग्राम रोहिडा इलाके सिरोही से बम्बई जाकर प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता पण्डित भगवानलाल ( १ ) इस पुस्तक में शिला लेखके वास्ते ' लेख ' शब्द रक्खा है. For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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