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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बरकरार समचउरंसे नग्गोहमंडल साइवामणे खुजे । हुंडेवि य संठाणे, ते सि सरूवं इमं होइ ॥ १११॥ तुलं वित्थडबहुलं, उस्सेहबहुं च मडहकोडं च । हिडिलकायमडहं, सवत्थासंठियं हुंडं ॥ १२ ॥ जस्सुदएणं जीवे, चउरंसं नाम होइ संठाणं । तं चउरंसं नाम, सेसावि हु एव संठाणा ॥ ११३॥ किण्हा नीला लोहिय, हालिद्दा तह य हुंति सुकिलया। जियदेहाणं वण्णा, उदएणं वण्णनामस्स ॥ ११४ ॥ गंधेण सुरभिगंधं, अहवा गंधेण दुरभिगंधं तु । होइ जियाणं देहं, उदएणं गंधनामस्स ॥ ११५॥ तित्तगकडयकसाया, अंबिलमहुरा रसावि पंचे भवे । तेवि हु जियदेहाणं, रसनामुदएण खजंता ॥११६ ॥ गुरुलहुमिउकढिणावि य, निद्धा लुक्खा य होंति सीउण्हा । जियदेहाणं फासा, उदएणं फासनामस्स ॥११७॥ गुरु न होइ देहं, न य लहुयं होइ सघजीवाणं । होइ हु अगुरुयलहुयं, अगुरुलहुयनामउदएणं ॥ ११८ ॥ अंगावयवो पडिजिभियाइ जो अप्पणो उवग्घायं । कुणइ हु देहमि ठिओ, सो उवघायस्स उ विवागो ॥११९॥ तयविसदंतविसाई, अंगावयवो ये जो उ अन्नेसिं । जीवाण कुणइ घायं, सो परघायस्स उ विवागो ॥ १२०॥ नारयतिरियनरामरभवेसु जंतस्स अंतरगईए । अणुपुवीए उदओ, सा चउहा सुणसु जह होइ ॥ १२१ ॥ १ "जीवाणं छ मुणेयव्वा" इति । २ "सुक्का य" इति । ३ "जियाण सरीरं" इति । ४ "रसा उ" इति । ५ "पंच विहा" इति । ६ "अत्तणो उ उबघायं” इति । ७ "३" । ८ "सुणह" इति ।। ो ये जो उ अनायं । कुणा गुरुयलयं, अगुप्ता, उदएणं फासना For Private And Personal Use Only
SR No.020557
Book TitlePrachin Karmgranth Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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