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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युवराजदेव द्वितीय का बिलहरी शिलालेख 285 "हे ईश! जिन नृपों ने वैभव का उपयोग करते हुए निश्चिन्त मन से आपकी पूजा की, वे कृतार्थ हो गये। हे वरद! जो विकारपूर्ण होकर 29. केवल काम में ही चित्त लीन रखते हैं उनकी सम्पत्ति केवल उन्माद का कारण होती है। 73 मदपूर्ण गजसमूह से क्या? अथवा इन कामशमन की लीला करने वाली कल्पनाओं से क्या? स्वर्ण, अश्व, वस्त्र तथा विविध प्रकार के रत्नों से भी कार्यसिद्धि नहीं होती यदि भवानीवल्लभ, (शिव) की अर्चना न हो।74 जो निश्छल मन से शंकर के दोनों चरणों का आश्रय लेता है वही राजवंश में जन्म लेता है, भूमि भोगता है, वेदानुरूप विचार करता है, रमणीय रूप से प्रभावशाली होता है तथा युद्ध में विजय की संपत्ति प्राप्त करता है। 75 30. और अधिक क्या कहा जाय? नाथ! केवल आपमें सदा मेरा भक्ति योग हो। आपकी कृपा से जिसमें सारे सुखों से विशिष्ट आत्मानुभव के योग्य अमृत उत्पन्न होता है, जो अनुभव से ही जाना जा सकता है।। 76 स्थिरानन्द के पुत्र श्रीमान् श्रीनिवास के द्वारा पहले तीन नृपों की यशोराशि का वर्णन किया गया। 77 थीर के मेधावी पुत्र सज्जन ने बाद के तीन नृपों का शुभ्र कीर्तिवर्णन किया। 78 पत्तन (नगर) की मण्डपिका (मण्डी) मेंनमक की प्रत्येक खण्डिका पर एक षोडशिका (सिक्का) जमा करना चाहिये तथा तैल के प्रत्येक (घाणी यन्त्र) पर हर माह एक षोडशिका, युगों के जोड़े पर प्रतिदिन एक पौर जमा करें। 79 सुपारी, मिर्ची, सुंठ आदि विक्रेय पदार्थों पर, हर भरक (विशेष भार) पर एक पौर, प्रत्येक वीथी (दुकान) एक कपर्दिका (कौड़ी),सब्जी की खेती पर द्यूतकपर्द (लघुकपर्द) जमा करायें। 80 तरल पदार्थ (रस) के विक्रेता के लिये कर (टैक्स) घास का पूला, तथा धीर्मर (मछली की टोकरी) आदि अन्य (भी यही) दे। हाथी की बिक्री के लिये चार तथा अश्व के लिये दो पौर दें। 81 अन्य कुछ भी दान, विद्या (से उपलब्ध) धन, धार्मिक (रूप से प्राप्त) लक्ष्मी, For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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