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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युवराजदेव द्वितीय का बिलहरी शिलालेख 279 उससे केयूरवर्ष (युवराजदेव प्रथम) हुआ, जो नीति के अनुसार चलता था, जो गौड़-स्त्रियों के मन के घनीभूत मनोरथ को पूर्ण करता था, कर्णाट की कामिनियों के स्तन रूपी क्रीडापर्वत पर विहार करने वाला हरिण था, लाट-स्त्रियों के ललाट को आभूषण से विभूषित करने वाला, काश्मीर की स्त्रियों का अमित काम प्राप्त करता था एवं कलिंग की ललनाओं के मनोरम गीतों का जिसे व्यसन था। 24 प्रलय-क्रीडा से शोभित दिक्पालों को पराजित करने के लिये प्रयाण करने वाली सेना ने तीनों लोकों में शंका उत्पन्न कर दी। अब अमित धूलिपटल नहीं उड़ा क्योंकि पकड़े गये शत्रु बंदियों के समूह के बहते आंसुओं के पूर से पृथ्वी आप्लावित थी। 25 जिस नृप ने युद्ध में स्पष्ट गजकुम्भ को विदीर्ण कर मोतियों के समूह का वहन किया। शत्रुओं की कीर्ति कणों को असिदण्ड से पुनः दृढ़ता एवं वेग से वह अपने उदर में विलीन कर गया। 26 12. पार्वती की क्रीड़ा भूमि कैलास पर्यन्त, उदयाचल तक जहां से सूर्योदय होता है; हेतु के निकट तक एवं पश्चिम सागर पर्यन्त जिसकी सेना का अनलस प्रताप शत्रुओं में पैठकर अमित संताप देता है। 27 उसकी विस्तृत रणभूमि में क्रोध से उत्कट गर्वीले शत्रुओं के आकाशचारी नयनकोण से अर्चना हो रही है। जिन्होंने उस पर आक्रमण किया था-तथा शीघ्रगामी खुरों के आघात से लुड़कते, स्वर्गीय पेय से चञ्चल शोभित बेताली के हाथी रूपी यन्त्र से दबने से जिनकी कपाल-अस्थि से टपकता हुआ रक्त रणभूमि में फैल गया। 28 देव रुद्र के अवतार हैं, देव ही त्रिभुवन रूपी भवन को उठाये हुए (स्तम्भ) हैं, देव त्यागी है, प्रसाद करने वाले नृपों को 13. अनुशासित करने में देव बांधने की रस्सी हैं-इस प्रकार बन्दिगणों के सतत प्रशंसा करने से जिसकी राजसभा में उपस्थित शत्रुओं के चित्त व्यथित हो गये। 29 शान्ति के धनियों का अद्वितीय स्वामी, कलुष के दोषों से रहित भरद्वाज हुए। कलश में निहित उसके तेज से उत्पन्न होने से वह भारद्वाज (द्रोण कहलाता) है, जो तीनों लोक में अपना चमत्कार बताने से प्रसिद्ध है। 30 For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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