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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमोघवर्ष का संजान ताम्रपत्र 229 भी प्राप्त हुई। 44 उसकी आज्ञा शत्रुसमूह भी सतत माला सी धारण करते हैं। उसकी शुक्र कीर्ति इतनी फैली कि वह दिग्गजों का मुखावरण बन गयी। हां दूर रहते हुए अपने अद्वितीय कर (लगान, किरण) प्रताप की महिमा से, उसने सारे नृपों को अपने तेज से अवनत कर दिया 49. इसने किस पर यह प्रभाव नहीं डाला। 45 जिसके द्वार पर शत्रु राज्य के स्वामी द्वारपालों के द्वारा अंदर प्रवेश करने की प्रतीक्षा में बाहर ही रोक कर परेशान किये जाते हैं। राजा उनकी गणिणकायें, मूल्यवान् रत्न-मोती 50. से सजे हाथियों का समूह वापस नहीं देगा। तब वे यह देखकर नष्ट होकर गायब हो गये। 46 सर्प की रक्षा के लिये जीमूतकेतु के पुत्र (जीमूतवाहन) ने (गरुड़ को) और शिबि ने 51. कपोत की रक्षा के लिये श्येन (बाज) को एवं दधीचि ने याचक (इन्द्र) को अपना शरीर दे दिया। उन्होंने भी एक-एक को ही संतुष्ट किया पर लोकोपद्रव की शांति रूपा महालक्ष्मी के लिये वीरनारायण ने बायीं अंगुली (से केवल) आदेश दिया। 47 भाई की हत्या करके 52. ही जिसने उसके राज्य तथा उसकी देवी का अपहरण कर लिया और तब उस (पाप) भीरू गरीब गुप्तवंशज दाता ने कलियुग में (दानराशिस्वरूप) लाख-करोड़ लिखवा दिया। जिसने परहित के लिये लज्जा त्यागकर अपने शरीर तथा अपने राज्य का अनेक बार (मोह छोड़) त्याग कर दिया। कीर्तिशाली दाताओं में भी यह राष्ट्रकूट तिलक महान है। 48 अपने बाहुरूपी सर्प के तीखे आयुध रूपी दंष्ट्रा के अग्रभाग से प्रचण्ड शत्रु समूह को दंश (से विनष्ट) करने वाले नरेश अमोघवर्ष के राज्य में ईति', व्याधि, अकाल आदि का हेमन्त, शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा तथा शरत् किसी भी ऋतु में अवसर नहीं आया। चारों सागरों तक जिसने अपनी मोहर चालू कर दी तथा जिसने अपनी गरुड (चिह्न से अंकित) मुद्रा से सारे नृपों की मुद्राएं निरस्त कर दीं। 50 अतिवृष्टिरनावृष्टिः शलभाः मूषकाः शुकाः। प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयःस्मृताः।। 53. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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