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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वरंग की गूढ़ भाषा, खजानों के बीजक अर्थात् गुप्त खजानों के संकेतक आदि माने जाते रहे। उन लेखों के पाठक दुर्लभ ही थे। शिलालेखों की इस प्राचीन लिपि के वाचन को भोजप्रबन्ध में जतुपरीक्षा कहा गया है। जतुपरीक्षा के जानकार भी दुर्लभ ही होते थे। आज भी दुर्लभ हैं। जतुपरीक्षा से पुरालेख पढ़े जाते थे। नर्मदा से प्राप्त शिलाखण्ड 'ईषद् भ्रंशिताक्षर' था। राजा भोज ने पढ़वाया। वह हनुमन्नाटक का खण्ड निकला। कहते हैं कभी हनुमन्नाटक पूरा शिलांकित था। वह नर्मदा में नष्ट हो गया था। राजा भोज ने उसे प्राप्त कर उसका संपादन करवाया। वह लीला नाटक अब प्रकाशित और सुलभ है। धारा में एक पारिजातमंजरी नाटिका के दो शिलांकित अंक आ भी सुलभ हैं। अत: नाटक पत्थर पर उत्कीर्ण करने की परम्परा थी। उससे प्राचीन भी शिलांकित नाटक मिलते हैं। समुद्र में डूबे मन्दिर की भित्ति पर शिलालेख की चर्चा प्रबन्ध-चिन्तामणि (पृष्ठ 40) में है। उस पर मदनपट्टिका रखकर छापा ले लेने की पद्धति वर्णित है। मदनपट्टिका पर मिट्टी की पट्टी रखकर उसमें उभरे विपरीत अक्षरों को (जतु) पण्डितों ने पढ़ा। शरीर के उभरे चिह्नों का छापा पत्तनिका से लेने की बात भोज की शृंगारमंजरीकथा में भी कही गयी है। पत्तनिका को खोलकर छापा या प्रतिबिम्ब देखा जा सकता था। ___पूर्वोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि परंपरा कहती है कि हनुमन्नाटक शिलांकित था। यह नाट्यालेख नाटक का सचमुच ही आरंभिक आलेखन जैसा ही प्रतीत होता है। इसी प्रकार दक्षिण के तेलंगाना के त्रैकूट पर्वत पर रावण का मूल व्याकरण आगम अंकित था। यह शिलांकित था। किसी ब्रह्मराक्षस ने वह चन्द्राचार्य, आचार्य वसुरात आदि को दिया। व्याकरण का यथावद् वैसा ही स्वरूप उससे प्राप्त कर उसे निरंतर शिष्यों के लिए व्याख्या करके बहुत सी शाखाएं कर दी गयीं और विस्तार कर दिया गया। यह बात भर्तृहरि के वाक्यपदीय (2/480) की टीका में पुण्यराज ने कही। यह उल्लेखनीय है कि रामायण के पात्रों के साथ अभिलेख की परंपरा जुड़ी हुई है। हनुमान ने सीता को लंका में जो राम की अंगूठी दी उस पर राम का नाम अंकित था। हनुमान का लिखा हनुमन्नाटक लीलानाटक है जो शिलांकित था। रावण का व्याकरण शिलांकित था। यह उल्लेखनीय है कि शिवताण्डव जैसे प्रौढ़ और लोकप्रिय स्तोत्र का रचयिता भी रावण ही बताया जाता है। परंपरानुसार रावण परम पंडित था। परवर्ती काल में तो कई नाटक और काव्य शिलांकित किये जाते रहे। जिनमें से कुछ पूर्ण अथवा खण्डित रूप में आज भी उपलब्ध हैं। अपनी वस्तुओं, अंगुठियों, शरों आदि पर नाम लिखने की परंपरा बड़ी For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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