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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 152 प्राचीन भारतीय अभिलेख आचार पथ (सदाचार) को जिन्होंने त्याग दिया है, जिनकी अशुभ में आसक्ति है उस युग के ऐसे नरेशों की मूढता से भूमि उसके पास पहुंच गयी जो विष्णु क समान कठोर धनुष की प्रत्यञ्चा के आघात के चिह्न वाले मणिबन्ध से युक्त बाहु वाला है तथा जो प्रजा-हित के व्रत की सफलता से उत्पन्न कंपकपी में धैर्य रखने वाला है (जिसे गर्व नहीं होता)। 2 जो इस अविनीत युग में निन्दनीय आचार वाले अन्य नृपों में केवल कल्पना-वृत्ति से भी उसी प्रकार संयुक्त हो सुशोभित न हो सकता जैसे धूल में पुष्प बलि। मनु, भरत, अलर्क तथा मान्धाता के समान उस महान् के प्रताप में 'सम्राट्' शब्द उसी प्रकार नितांत सुशोभित होता है जैसे चमकती मणि कुंदन में। 3 जो राजाओं में मरु, पर्वत, गहन वन, सरिताओं तथा वीरों के द्वारा संरक्षित देशों पर अपनी शक्ति से विजय पाकर उन्हें अपने घर के आसपास (की भूमि के) समान भोग रहा है, जिन्हें सारी पृथ्वी को रौंद कर अपना प्रताप दिखाने वाले गुप्तनाथ (गुप्त सम्राट् अधीन कर) नहीं भोग पाये तथा न जिन (अधीनस्य) नृपों के सिर पर बिराजने वाली आज्ञा उन हूण नृपों में प्रवेश पा सकी, उसका अपने घर के परिसर के समान जो उपभोग कर रहा है। लोहित के समीप, ब्रह्मपुत्र की गहरी घाटियों (तलहटी), महेन्द्र पर्वत, हिमालय की गंगा से स्पृष्ट चोटी (गंगोत्री) तथा अरब सागर तक के (अधीनस्थ) सामन्त, जिनकी शक्ति तथा सम्पत्ति के साथ अहंकार का भी अपहरण हो गया है, (तथा जो) जिसके चरणों में नमन करते हुए चूडामणि की किरण से भूमि भाग को विचित्र बना रहे हैं। 5 6. जिसने शिव के अतिरिक्त अन्य किसी के भी सामने सिर झुकाकर दीनता व्यक्त नहीं की, जिसकी भुजाओं से घिरा हिमालय 'दुर्ग' शब्द में गर्व का वहन करता है उस राजा मिहिरकुल ने भी अपने कठोर सिर पर अपनी बलिष्ठ भुजाओं से नमन करते हुए सिर के पुष्पहारों से जिसके दोनों चरणों की अर्चना की। 6 मानो पृथ्वी को मापने के लिये, ऊपर तारक समूह को गिनने के लिये, सत्कर्मों से उपार्जित कीर्ति को ऊपर की ओर स्वर्ग का पथ बताने के लिये, स्तम्भ के समान ही मनोरम तथा दृढ़ भुजा की अर्गल वाले उस राजा श्री यशोधर्मा ने प्रलयकाल तक की कालावधि तक के लिये यहां यह स्तम्भ खड़ा करवा दिया है। 7 For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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