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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुधगुप्त का एरण स्तम्भलेख 133 8. तस्यैवानुजेन तदनुविधायिन(1) तत्प्रसाद-परिगृ(ही)तेन धन्यविष्णुना च। मातृ-पित्रोः पुण्याप्यायनार्थमेष भगवतः। पुण्यजनार्दनस्य जनार्दनस्य. .. ध्वस्तम्भो( 5 )भ्युच्छ्रितः (॥) स्वस्त्यस्तु गो-ब्राह्मण-(पुरोगाभ्यः सर्वप्रजाभ्य इति। (।) उन चतुर्भुज विष्णु की जय हो जिनका पलङ्ग चारों सागर की विपुल जलराशि है जो जगत् की स्थिति, उत्पत्ति तथा प्रलय के 2. हेतु हैं एवं जिनके ध्वज का चिह्न गरुड है। (1) 165 वर्ष व्यतीत होने पर राजा बुधगुप्त के शासनकाल में आषाढ मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी गुरुवार के दिन। 2 सं0 100+60+5 (3165) लोकपाल के गुणों से अन्वित, जगत् में महाराज की शोभा का अनुभव करते हुए यमुना तथा नर्मदा के मध्य भाग पर 4. सुरश्मिचन्द्र के पालन करने पर. ... .13 इस पूर्वोक्त वर्ष, मास तथा दिन. . अपने कर्म में निरत यज्ञ कर्ता, स्वाध्याय से विज्ञ, ब्राह्मण एवं ऋषि मैत्रायणीय (के वंश) में श्रेष्ठ इन्द्रविष्णु के प्रपौत्र, पिता के गुणों के अनुकर्ता वरुण विष्णु के पौत्र, अपने पिता के पश्चात् (उत्तराधिकारी रूप में) उत्पन्न अपने वंश की वृद्धि के हेतु हरि विष्णु के पुत्र ने, जो भगवान् का परम भक्त है, विधाता की इच्छा से जिसे लक्ष्मी ने स्वयं वरण कर प्राप्त किया है जो यश से चारों समुद्र पर्यन्त प्रसिद्ध है तथा जिसे अक्षय सम्मान एवं धन सुलभ है, ऐसे अनेक शत्रुओं को युद्ध से जीतने वाले महाराज मातृविष्णु ने 8. तथा उसी के अनुज उसके अनुसर्ता तथा उसकी कृपा से संरक्षित धन्यविष्णु ने माता-पिता की पुण्य-वृद्धि के लिये पुण्यात्मा जनों के संरक्षक (पुण्यजनाईन) जनार्दन का यह ध्वज स्तम्भ खड़ा किया। गो, ब्राह्मण तथा उन्नतिशील सारी प्रजा का कल्याण हो। 9. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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