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विवागदारुणो मायाचारो
ई. स. ८ वें शतक में हरिभद्रसूरि नाम के एक महान् जैनाचार्य हुए। पहले वे बड़े विद्वान् तथा दृढ़ वैदिकधर्मी ब्राह्मण थे। चित्रकूट में जितारि राजा के आश्रय में वे पुरोहित थे। उन्मत्त हाथी के आक्रमण से बचने के लिए उन्होंने जिनमदिर का आश्रय लिया और याकिनी महत्तरा के सदुपदेश से जैनधर्म अंगीकार किया। वे बडे आचार्य बन गये। उन्होंने संस्कृत
और प्राकृत में विपुल ग्रंथ-रचना की है । समराइच्चकहा' (समरादित्यकथा) नाम की उनकी प्राकृत में प्रदीर्घ और बोधप्रद धर्मकथा है । उस ग्रंथ के दूसरे भव में मायाकषाय का स्वरूप दिखाने के लिए उन्होंने अमरगुप्तमनि की उपकथा कही है। यहाँ अमरगुप्त का पहला सोमानामक रुद्रदेव की पत्नी का भव दिया है । विषयासक्त रुद्रदेव ने अपने सुखोपभोग में व्यत्यय देखकर मायाचार से सम्यक्त्वी सोमा को कैसे मारा, यह वृत्तांत है।
इ. स. च्या ८ व्या शतकात हरिभद्रसूरी नावाचे एक थोर जैनाचार्य होऊन गेले. प्रथम ते मोठे विद्वान् कट्टर वैदिकधर्मी ब्राह्मण होते. ते चित्रकटात जितारीराजाच्या पदरी पुरोहित होते. उन्मत हत्ती पासून बचावण्याकरिता त्यांनी जिनमंदिराचा आश्रय घेतला आणी याकिनी महत्तराच्या सदपदेशाने जैनधर्म स्वीकारला, ते मोठे आचार्य बनले, त्यांनी संस्कृत व
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