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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालगायरियकहा * * * * * विसओ जइ वा रम्मो, तो किमतः परं । सुणिवेटा पुरी जइ तो किमतः परं । 3GH रातो जइ वा जणो सुवेसो तो किमतः परं । जइ वा हिंडामि भिक्खं तो किमतः परं । जइ सुण्णगिहे सुमिणं करेमि तो किमतः परं ।' अह पारसकुलं गंतूण सूरी इनकसाहिणा ( मंतिणा ) सह साहाणुसाहिणो ( राइणो ) सहाइ वच्चइ सव्वस्स सुहइ बुल्लइ ।। एवं सो वयणरसेण रायप्पमहलोयं, रंजइ/ विज्जाइगुणेहि गुरु त्ति सगराइणा पडिवन्नी । तत्तो सूरिवयणाओ सयलसंगसाहिणो दुगदृभिल्लेण सह जुज्झिउं निग्गया। अह तेसु चलंतेसु गिरिणो धुज्जति, धरणी थरहरइ, धूलीहिं च झंपिओ सूरो। कमेण सिंध-- नई उत्तरिऊण ते सुरट्रमंगले पत्ता। भार॥ अह पाउसम्मि पत्ते से ठिया तत्थ1 वटुंते सरयसमए लाडारायाणो जे गद्दभिल्लेण अवमाणिया ते मेल्लेउं अन्ने य तओ उज्जेणि रोहति । एगया रयणीइ सुन्नमणं सूरि पासित्ता सासणूदेवया शुणइ-- 'मुणिवर, दुक्खं मा धरसु नियहियए । सीलेण सीयासरिसंसर-- स्सइं जाण, तस्सीलपभावेण तुह् जयपत्तं होहि' त्ति अइंसणं पत्ता अह पांगारं सुन्नं ददै णे सगाइराईहि सूरी पुट्ठो। तो साहिय . गद्दभीविज्जो सूरी कहेइ-'अज्ज अट्ठमी दिणो। राया गद्दभिल्लो विहियउवव सो गद्दर्भ विज्जं साहइ । ताहे सा गद्दभी महंतेण सद्देण For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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