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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनकी इच्छा पूर्ति के लिये यह 'पथ्य' हिन्दी जनता के सामने उपस्थित किया जा रहा है। आशा है लोग इससे जानकारी प्राप्त कर यथा अवसर लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे। इस पुस्तक में शास्त्रीय कठिन बातें छोड़ दो गई हैं, तथा साधारण अवस्था में रोगो को स्वयं जितने ज्ञान की आवश्यकता होती है उतना हो विवेचन किया गया है, क्योंकि विशेष लिखने से विषय कठिन हो जाता जो सर्व साधारण के काम का नहीं होता। यह पुस्तिका विशेष कर उन्हीं लोगों के लिये लिखो गई है जो इस विषय में कुछ भी जानकारी नहीं रखते, और इसी से कई स्थानों पर आवश्यक बातो को पुनरुक्ति भी करनी पड़ी है। आशा है कि साहित्य के मर्मज्ञ इसके प्रति अनुचित विचार न करेंगे। इस पुस्तक का उपयोग कर नीरोगावस्थामें-उसी प्रकार बीमारी में तथा वैद्य और बीमार दोनों ही समान रूपसे लाभ उठासकेंगे। बीमारी में इस पुस्तकके पढ़ते रहनेसे रोगोको सहसा कुपथ्य करने की इच्छा उत्पन्न हो नहीं होगो, तथा उसके लिये कौन वस्तु पथ्य है और कौन अपथ्य, उसे वह स्वयं ही जान लेगा और उसी के अनुसार चलने के लिये उत्साहित भी होगा। वैध को भी हर एक बात समझाने के लिये अपना बहुत सा समय खर्च नहीं करना पड़ेगा। केवल उक रोगो के लिये पथ्य सम्बन्धी कोई विशेष प्रावश्यक व्यवस्था देने की कोई होगी वही उसे बता देनी पर्याप्त होगी रोगी इल पुस्तक में उसका भी नोट कर अन्यान्य बातों के साथ २ उसे भी याद रख सकेगा। और उनके अनुसार चल सकेगा। वैद्य को निश्चिन्तता रहेगी कि रोगो इस पुस्तक द्वारा सचेत रहकर पथ्य में कोई गड़बड़ अजानमें नहीं कर बैठेगा और उससे उसे आराम For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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