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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिह्न हैं और अजीरा एक प्रकार का गुप्त विष है जो न जाने कब किस तरह से मनुष्यों का नाश कर देता है जिसका पहिल अनुमान नहीं लगाया जा सकता। साधारण अवस्था में ऐसे खान पान का बुरा असर उसी दिन मालूम नहीं पड़ता है इसी से लोग निर्भय होकर व अजान में रहकर स्वादिष्ट पदार्थों से पेट को भरते हैं और समझाने पर भी सावधान नहीं होते हैं । स्वास्थ्य ज्ञान की कमी के कारण अब काम काज से छुट्टी के दिनों में, नये दिनों में, तथा उत्सवों और प्रानन्द के अवसरों में स्वादिष्ट के नाम से पोषण में होन पदार्थों का सेवन कर लोग आनन्दित बनते हैं पर अनेक बार इस प्रकार स्वादिष्ट पदार्थों से आनन्दित होकर हम परोक्ष में अपनी रोग प्रतिबन्ध शनि गंवा देते हैं और फिर थोड़ी सी सी गर्मी से पीड़ित हो कर कष्ट उठाते हैं। स्वास्थ्य के लिये सब से बुरा रोग अजीर्ण है पर अजोर्स न होने पावे इसकी कोई सम्हाल नहीं रखते हैं। अजीर्ण में भोजन करना विष के समान है, शास्त्र में इसके लिये बड़ी २ आज्ञाय है पर प्रायः देखा गया है कि कितने हो तो अजीर में स्वादिष्ट, अप्राकृतिक, किन्तु विरुद्ध और भारी भोजन कर अजीर्ण को और भी पुष्टि प्रदान करते हैं, वे लमझते नहीं वा जानकर मूखों की भांति परवाह नहीं करते कि स्वयं उन्होंने ही पेट की सामर्थ्य से कहीं अधिक भोजन करके अजीर्ण रूपी विष उत्पन्न किया है और अब उसमें फिर अधिक खाकर अजीर्ण रूपी विष में वृद्धि करना मानो अपने कृत्यों से ही मौत को जल्दी बुलाना है। जिन लोगों को अजीर्ण से दूसरे रोग पैदा हो जाते हैं वे रोग का कारण न समझ नेधों और डाक्टरों से-मुझे उल्टी होती है, मुझे दस्ते लगती है, पेट फूल रहा है-इत्यादि शिकायत करके दवा मांगते हैं। वैद्य जी रोग For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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