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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पथ्यकी उपयोगिता और महत्व को ध्यान में रखते हुये, अपनी जिम्मेवारी को समझ कर चिकित्सक की इच्छानुसार बड़े प्रेम से पथ्य की सुव्यस्था रखें जिस से रोगी को शीघ्र श्रारोग्यता मिले। यह सत्य है कि बोंमार के पथ्य का प्रबन्ध उत्तम हो तो असाध्य और प्राशा छोड़े हुए रोगोभी कभी कभी थोड़े समय में और बिना विशेष कठिनाई के श्राराम हो जाते हैं। ___ बीमार के पथ्य में ध्यान करने योग्य ५, ४ बातें ऐसी हैं कि यदि लक्ष्य सहित प्रयत्न किया जावे-उपचारक उचित रीति से व्यवहार करे-तो आशातीत लाभ पहुंच सका है। सबसे प्रथम तो पथ्य की व्यवस्था वैद्य की इच्छानुसार रखी जावे और इसमें उन्हों को श्राज्ञा शिरोधार्य की जावे । वैध जो कहे वही खान पान दिया जावे तथा रहन सहन श्रादि भी वह बतलावे वैसा ही रखा जावे। द्वितीय पथ्य जिन वस्तुओं का दिया जावे उनके मूल पदार्थ बढ़िया और ऊचे प्रकार-जाति के हो । बाजार में सस्ते के नाम से बिकने वाले धान्य तथा खाध पदार्थ निकसे और बिगड़े स्वाद के होते हैं जो रोगी को शक्ति बनाये रखने का गुण-पूरागुण नहीं रखते हैं। तृतीय पथ्य अच्छी तरह से बिधि पूर्वक तैयार किया हुआ यथा सम्भव स्वादिष्ट होना चाहिये। चतुर्थ पथ्य हमेशा नियत समय और नियत मात्रा ( मात्रा समय समय पर वैध-गोगो को सुधा और अग्नि तथा आवश्यकता का विचार कर घटाता बढ़ाता रहता है ) में दिया जावे। पंचम पथ्यके समय रोगीका चित्त शान्त रहे और वह उसे स्वाद और रुचि से सेवन कर सके इसकी व्यवस्था रखी जाये। और भी ऐसे ही विषयों को लेकर लग्न के साथ पथ्य का. युक्ति पूर्वक प्रबन्ध किया जावे तो खान पान के पथ्य को लेकर रोगी को 'कंटाला' For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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