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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहीं भी उपदेश नहीं है कि जिसमें पथ्य की अनुचित स्वेच्छाचारिता अाज की समान गिनी गयी हो । वरन् इस अवस्था के उपस्थित करनेवाले इस समय के आयुर्वेद के उपासक कहलानेवाले ही एक संख्या के वैध है, जिन्होंने अपने बटुओं की कृपा से आयुर्वेद के प्रेमियों में इसका अातङ्क खड़ा कर दिया है। अपढ़ वैद्यों ने पथ्य का आतङ्क फैलाया है आतङ्कका कारण यह नहीं कि पथ्य रखने से रोगियों को अपने जोवनमें हानि उठानी पड़ी हो वा रोग शान्त करने में आपत्ति का सामना करना पड़ा हो; परन्तु बात कुछ और ही है। इधर पिछले वर्षों से वैद्य कौन है वा कौन होना चाहिये और किसकी चिकित्सा करानी आवश्यक है, इसका महत्व हम भूल बैठे हैं। ___ इसमें संशय नहीं कि राज्य की रोकटोक न रहने से अाजकल अनेक नामधारी चिकित्सक बन बैठे हैं, जो खाद्याखाद्य पदार्थों की पूरी जानकारी नहीं रखते हैं और अपनी अनभिज्ञताके कारण संशय ही संशय में रोगी को कई एक उपयोगी और लाभकारी वस्तुओं तकके सेवन करने की मनाई पथ्यके नामसे करदेने में ही अपना भला समझते हैं । जिससे रोगो को इधर तो बीमारी से भूख नहीं लगती है और हरदम अरुचि बनी ही रहती है और वह उससे दिन प्रति दिन दुर्बल वा शक्ति- हीन होता चला जाता है, उधर वैद्य जी के ज्ञान की अपूर्णता के दोष से पथ्य की एकबारगी कठिनाई और भी अन्न तथा बलदायक पदार्थ पहुंचने में बाधा डाल देती है। यहां तक कि कई वस्तुएं उस रोग में लाभकारी होने पर भी उनसे उसे दूर रहना पड़ता है, जिससे For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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