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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाथों अपने आयुर्वेद की अप्रतिष्ठा के कारण बनते हैं और उसे नीचा दिखाने का अपयश लेकर अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ते हैं। रोग दूर करने में पथ्य ही प्रधान साधन है__ इस सुधरे हुये ज़माने में रोगों को दूर भगाने के लिये लगभग ७५००० औषधियों का आविष्कार एक अकेली एलोपेथी चिकित्सा में निकल चुका है ऐसा पाश्चात्य डाकृरों का कहना है । इसके अतिरिक न जाने वीसियों प्रकार की नवीन चिकित्सा पद्धतियां भी और प्रचलित हुई हैं। औषधियों के साथ गऊलोचन, काडलिवर आइल, बोवरील, लोबीझ एक्स्ट्राकृ श्राफमीट, चिकिनसोप, हड्डियों से निकाला हुआ फासफोरस, जानवरों के पेट में से आया हुआ पेपसिन, कहां तक नाम ले प्राणी यन्त्रज प्रणाली Animal Organo therrapy में ऐसी ही औषधं खासकर उपयोग की जाती है, एडरिनालिन Adrenalin, सेरेविन एण्ड मायेलिन Cerebrine & Myelin सेरेबिन Cerelbrin, एकस्ताक अव डिउडिनाल मेम्ब्रेन Extract of Duodenal Membrane, इनफन्डिबुलेर एकस्टाक Infundibular Extract मिउसिन Mucin, एभेरिवान एकटक (Ovarian Extract टाइयेलिन Ptyalin, रेड बोनम्यारो एकस्तै कृ Red Bone Marrow Extract स्पार्मिन Spermin थाइमस ग्लान्ड Thymus gland थाइरेउड ग्रन्थि के प्रयोग-Thyroid Glandd Preparations, इत्यादि ग्लानिकारक पदार्थों का भी व्यवहार किया जाने लगा है, फिर भी रोगों की संख्या उल्टी बढ़ते बढ़ते दो हजार के ऊपर तक पहुंच गयी है। पर शोक है, कि हम यह सब जानते हुये भी इसके प्रतिकार For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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