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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) की जावे । जब आरोग्यता मालूम दे तब धोरे धोरे पीछा अन्न प्रारम्भ किया जावे और कई दिन तक हलका पथ्य लें। आरोग्य होजाने पर भी कई दिन तक पथ्य बराबर रखें, मिठाई वगैर न खावें, न अधिक ही खावें जब ३।४ महीने अच्छी तरह निकल जावे तर थोड़ा २ और कभी २ 'मीठा' वगैरः लेना चाहिये । इससे पहिले मीठा खाने से सुधरा हुआ रोगी भी पीछा उथल जाता है। अनेक लोग छिप कर खा जाते हैं, अन्न बंद होता है उन दिनों में भी खा लेते हैं और जब पीछे अन्न शुरु कर देते हैं तब भी जल्दी खाने के लिये प्रयत में रहते हैं जिससे अकसर गड़बड़ हो जाया करती है और जल्दी श्रारामी नहीं मिलती है। अन्न इस रोग में बन्द कर देना बहुत हितकर है। प्रथम तो दूध वा छाछ स्वयं रोग नाशक है, द्वितीय केवल दूध का प्रयोग रहने से कुपथ्य करने का अवसर रोगी को बहुत कम मिलता है और यदि कुछ दिन-रोगी भारी चीजें (कुपथ्य) न खाने पावे तो वह तुरन्त और निश्चय-यदि आयु हो तो-आरोग्य हो जाता है । प्रायः देखा है कि अन्न बराबर चालू रख कर चिकित्सा करने से जल्दी आरामी नहीं मिलती है, कभी २ तो लाभ होता ही नहीं है। पथ्य इसी रोग में अच्छा रखने की ज़रूरत है, कारण जो कुछ खाया जाता है वह पेट में जाता है परन्तु पेट की बातें कमजोर होती हैं उससे इसका बुरा असर तुरंत मालूम पड़ता है और कई दिन तक उसका प्रति फल स्वरूप-कष्ट उठाना पड़ता है । यदि बार बार कुपथ्य किया जावे तो फिर, आरोग्य होने की प्राशा भी कम रहती है और वैद्य भी उसके प्रति खास तौर पर (Interest ) नहीं लेते हैं। अन्न वन्द करके दूध वा दही वा छाछ सेवन की आवे तब For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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