SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१. प्रेमा भक्ति कई लोग भवितव्यता पर आधार रख कर कोई काम नहीं करते। परंतु यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। सतत उद्यम करने के उपरांत भी जब कार्य-सिद्धि नहीं होती, तभी चिंतन करना चाहिए कि, जो होना सो हो गया। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी . पादरा दिनांक : २३-२-१९१२ कई लोग भक्तिव्यता (भाग्य) पर आधार रख कर काम नहीं करते। परन्तु यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है | सतत उद्यम करने के उपरांत भी जब कार्य-सिद्धि नहीं होती। तभी वीचार करना चाहिए कि जो होना था सो हो गया। छद्मस्थ लोगों के लिए केवल ज्ञान नहीं है। अतः उन्हें निरंतर उद्यमशील रहना चाहिए। पंच समवाय में किसी अपेक्षावंश उद्यम की प्रधानता है। मोक्ष प्राप्ति हेतु भी ज्ञान, दर्शन व चारित्र के उद्यम की आवश्यकता है। प्रायः प्रीति, भक्ति, वचन एवं असंग अनुष्ठान द्वारा परमात्म-तत्त्व की आराधना करनी चाहिए। अशुद्ध प्रीति को शुद्ध प्रीति में परिवर्तित कर आत्मा की परिणति श्रेष्ठ करनी चाहिए। ___ अशुद्ध प्रीति से हमेशा संसार की उत्पत्ति होती है। और शुद्ध प्रीति से शुद्धात्म धर्म-सृष्टि की रचना होती है। अशुद्ध प्रीति से नानाविध-उपाधियों में वृद्धि होती है और मानसिक चंचलता बढ़ने से आत्मवीर्य की चंचलता भी बढ़ती है। शुद्ध प्रीति अनुष्ठान से उपाधियों का नाश होता है और मानसिक चंचलता दूर होती है। साथ ही आत्मवीर्य की स्थिकता के उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। वैसे ही उसके कारण अपनी आत्मा सुधरती है और उसके सम्पर्क में आनेवाले अन्यात्मा भी सुधरते हैं। उसी तरह उसकी वजह से सात्विक अवस्था उत्पन्न होती है। उससे रजोगुण व तमोगुण का नाश कर सकते हैं। उसी तरह विनय व सम्मानपूर्वक भक्ति अनुष्टान द्वारा धर्म की आराधना करनी चाहिए। For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy