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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४. शुभ-ध्यान ध्याता, ध्येय एवं ध्यान की एकता जितने समय तक कायम रहती है, उतनी अवधि तक हमाग चित किसी अन्य वस्तु में नहीं लगता। अशुभध्यान को टालने के लिए शुभ--ध्यान का सेवन करना चाहिए। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी कोसंबा दिनांक : १०-२-१९१२ आत्मा के छट्टे ग्थानक का प्रदीर्घकाल्न पर्यंत चिंतन करने से आत्मज्ञान का प्रकाश वृद्धिगत होता है। जैसे जैसे छट्टे ग्थानक का अधिकाधिक मनन किया जाता है वैसे वैसे आत्म-तत्त्व सम्बन्धित विशेष जानकारी हासिल होती है । ज्ञान प्राप्त होता है। आत्मा की शुद्ध-विशुद्ध परिणति प्रकटित हो, निरंतर ऐसी विचारश्रेणी का अवलम्बन करना चाहिए। आत्मा के छट्टे स्थानक के विषय में अनुभव-ज्ञान प्राप्त कर आत्मा के स्वभाव में अहर्निश रमण करना चाहिए। एक ही आत्म-तत्त्व का यदि लगातार तीन गत्रि तक एकाग्र चित ध्यान करने मे आत्मा के अनुभव की झांकी-प्रतीति होती है। मन में उत्पन्न होते गग द्वेषात्मक संकल्प-विकल्पों को दबाने तथा समभाव विचार श्रेणी का अवलम्बन कर आत्माध्यान में निमग्न होने पर अमुक अंश में आत्म का सहज बल प्रकट होता जाता है। आत्मा के अनेकानेक गुणों में से किसी एक विशेष गुण का प्रदीर्घ काल तक चिंतन करना चाहिए और ऐसा करने में अवगेध रूप आडे आते मोह-विक्षेपों को दूर करने हटाने का प्रायः प्रयत्न करना चाहिए। परमात्मा के साथ आत्म का एक्य साधने तथा परभव का भान भूल जाने पर राग-द्वेष की परिणति का अवरोध होता है। ध्याता, ध्येय एवं ध्यान की एकता जितने समय तक कायम रहती है उतनी अवधि तक हमाग चित्त किसी अन्य वस्तु में नहीं लगता-स्थिर नहीं होता। ध्यान धारणा के समय परमात्मा के साथ आत्मा का ऐक्य For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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