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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पैदा करनी चाहिए। इस तरह कार्य के प्रति मचि रखने से सम्बन्धित कार्य सिद्ध होता किसी भी कार्य में यदि मस्तिष्क को आवश्यक्ता से अधिक रोक कर मगजपच्ची करोगे तो निस्संदेह उसे बिगडते देर नहीं लगेगी। परिणाम यह होगा कि इच्छित कार्य कदापि सिद्ध नहीं होगा। जो कार्य करते हों, पूरी सावधानी बरत कर तग्ने चाहिए। ठीक वैसे ही तन्मय होकर कार्य करने से सम्बन्धित कार्य का अपूर्व ज्ञान प्राप्त होता है। सुचारु रूप से कार्य संचालन करने की पद्धति का जब-जब मानव दृढता के साथ अवलम्बन करेगा तब-तब उक्त कार्य योग के उच्च शिखर पर आरुढ हो सकेगा।वास्तव में आंग्ल व अमरिकन नागरिक नियमित रूप से कार्य करने ही पद्धति तथा सम्बन्धित कार्य एकाग्रचित हो, करने के तरीके के कारण आज वह प्रवृत्तिमार्ग के एकमेव योगी बन बैठे हैं। हेतुतः अव्यवस्थित कार्य करने की पद्धति को तिलाञ्जलि दे कर व्यवस्थित कार्य-पद्धति अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है। जिस बाबत या कार्य की जिम्मेदारी अंगीकार कर लो उसमें तन्मय होकर जुटना चाहिए। अर्थात् उसे अंजाम देते हुए मन का संयम करना चाहिए। क्योंकि मन को संयमित करने से ही कार्य-सिद्ध होती है। साथ ही आत्मशक्ति का विकास होता है। ठीक उसी तरह दूसो भव में भी उक्त शक्ति का शीघ्र प्रचार होता है। ૨૨ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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