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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदुर्लभ मनुष्य भव प्राप्त करके श्री जिनेश्वर परमात्मा की भक्ति, सम्यग ज्ञान की भक्ति में पुण्योदय से प्राप्त शक्तियां का सदुपयोग करते हुए, मनुष्य-भवकी सार्थकता सिद्ध करना हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए. अनंत दुःखों से भरे हमारे इस संसार का अंत हो इसी आशय-युत्म धर्म कार्यो में सदा तत्परता पूर्वक प्रयत्नशील रहना चाहिए। "पुष्यशाली माता पिता की संताने भी पुण्यशालीही होती हैं, इस उत्त्मि को चरितार्थ करते हुएँ, एसे ही पुण्यशाली श्री हंजारीमलजी एवं श्री बाबुलालजी पर माता श्री कनीबाई एवं पिता श्री पूनमचंदजी के धार्मिक संस्कारो का जो प्रभाव पड़ा उसीके अनुरूप आप तथा आपका परिवार धर्मकार्यो के प्रति समर्पित है। माता पिता के उपकारों की स्मृति सदैव अमर रहे, इसीलिए आपने के.पी. संघवी रिलीजिस ट्रस्ट एवं के.पी. संघवी चेरीटेबल ट्रस्टकी स्थापना की हैं । इन ट्रस्टों के जरिए आत्मकल्याण के अनेकविध सुकृत कार्य करने का बीडा उढाया हैं, वे उन कार्यो में रत रहते हैं- जो अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं. आपका परिवार भी आपके साथ ही धामिर्क तथा सामाजिक कार्यो में आपको साथ में जुटा हुआ हैं और निरंतर उनमें सहभागी बन रहा हैं । आपके परिवार के सदस्योने जो तपस्या का ढाढ जमाया हैं वह हम सभी के लिए अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय हैं, “फाउन्डेशन' के हम सभी सदस्य, पदाधिकारी, एवं सभी शुभ चिंतक, आपके पारिवारीक सदस्यों के प्रति शुभ कामनाऐ अर्पित करते हैं। श्रीमान् हंजारीमलजी के सुपुत्र श्री दिलीपकुमारजीने छोटीसी उम्र में अट्टाई की महान करके हमें भी तप करने की सुन्दर प्रेरणा दी हैं । श्रीमान् हंजारीमलकी धर्मपत्नी अं.सौ. श्री शांताबहनने सिद्धितप, १६ उपवास, १० उपवास, मोक्षदंड तप आदि विविध तपश्चर्या करके आपके परिवार में तपका रवासा माहौल बना दिया। वि.स. २०४९ में (गतवर्ष) श्रीमान् बाबूलालजीकी धर्म-पत्नी अं.सौ. श्री रतनबाईने मासक्षमण तपकी उग्र तपश्चर्या शासनदेवकी कृपासे निर्विघ्न पूर्ण की और उनके बर्षातप की आराधना भी चल रही हैं. गतवर्ष (वि.स. २०४९) श्रीमान् हंजारीमलजी के सुपुत्र श्री किशोरकुमारजी एवं उनकी धर्मपत्नी श्री सुधाबहनने और इनके सुपुत्र श्री जिमितकुमार और सुपुत्री रुपलबहनने एक साथ में अट्ठाई की तपश्चर्या करके आपके पूर्वजों का अपूर्व गौरव बढाया। For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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