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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. गुरु-कृपा सर्व सुखदयिनी गुरु-कृपा प्राप्ति करने के लिए गुरु के प्रति अखंड श्रद्धा रखनी चाहिए। चाहे, शिष्य को प्राणान्त भी करना पड़े तो भी गुरु की छत्रछाया उसे कभी नहीं छोड़नी चाहिए। गुरुभक्ति सब सुखों की मुख्यतः शाश्वतसुख की कल्पबेल है। --श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी सिरीगाँव दिनांक : ३०-१२-१९११ उत्तम शिष्य प्रायः सद्गुरु की सेवा में सर्व शक्तियों को समर्पित कर देता है... आत्मभोग देता है। वस्तुतः ऐसे शिष्य उत्तमोत्तम गुरुभक्ति के माध्यम से इस संसार में उत्तम गति को प्राप्त होते हैं। प्रेमलक्षणा भक्ति द्वारा शिष्य अपने गुरु के मन को सहज ही आकर्षित कर सकता है। गुरु-उपदेश श्रवण करने के लिए वह सदैव तत्पर...आतुर रहता है। गुरु को प्रसन्न कर हमेशा आत्महित की शिक्षा ग्रहण करता है। गुरु द्वारा दी गयी अप्रिय सीख...सिखावन को भी वह अमृतपान सदृश मानता है। टीक वैसे ही गुरु देव उलाहने को भी वह उनकी कृपा-प्रयादी के रूप में सहर्ष अपनाता है। सुपात्र विनयी शिष्य की यह कदापि इच्छा नहीं होती कि गुरुदेव उसे मानसम्मान प्रदान करें। जबकि कुलवालक व विनयरत्न सदृश दृष्ट शिष्य बृहस्पति जैसे अपने गुरु होने के उपरांत भी उनके गुण ग्रहण करने में असमर्थ सिद्ध होते हैं। और उनके उपकार का बदला अपकार से चुकाते हैं। भले ही प्राणार्पण करना पडे, शरीर नष्ट हो जाय या फिर असंख्य संकटों का सामना करने का प्रसंग आ जाय तो भी उत्तम शिष्य अपने गुरुदेव का अपमान हो...उनके मन को जरा भी ठेस पहुँचे ऐसी कामना कभी नहीं रखते । बल्कि प्रायः वे उत्कट भाव से गुरुभक्ति में लीन-तल्लीन रहते हैं। साथ ही निज आत्मा...तनमन गुरुचरण में समर्पित किया होने के कारण सदैव गुर्वाज्ञा में रहते हैं। १३ For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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