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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् शारीरिक बल विकसित कर उसकी हिफाज़त करना और उसका धार्मिक कार्यों में उपयोग करना ही उत्तम मनुष्य का आद्य कर्तव्य है। -श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी सोपाला दिनांक : २१-१२-१९११ शरीरको हद से बाहर अधिकाधिक कार्यों में लगाये रखने के परिणाम भयंकर व हानिप्रद होते हैं। शारीरिक आरोग्य से धर्म की आराधना की जा सकती है। साथ ही इससे मनोयोग की सानुकूलता भी बनी रहती है। अतः शारीरिक शक्ति का क्षय न हो, इस तरह उसका उपयोग कर प्रायः प्रवृत्तियाँ करनी चाहिए। दृढ एवम् निरोगी शरीर के अभाव में मानव ध्यान...समाधि में लीन-तल्लीन होने में असमर्थ होता है । परिणामतः शरीर-बल संचय कर उसकी हिफाजत करना व धार्मिक कार्यों में उसका उपयोग करना ही उत्तम मनुष्य का परम कर्तव्य है। शरीर के वीर्य की सुरक्षा...देखभाल रखने से शारीरिक दृढता कायम रहती है और वीर्य-रक्षा रूपी ब्रह्मचर्य-व्रत से आंतरिक ब्रह्मचर्य की साधना करने में अधिकाधिक सहायता मिलती है। स्वस्थ शरीर हमेशा के लिए निरोगी बना रहे, अतः शारीरिक-शास्त्र का ज्ञान-संपादन कर प्रायः यथाशक्ति अपना आरोग्य कायम रहे ऐसे उपाय करने चाहिए। क्योंकि शारीरिक योग से ही मानसिक योग की रक्षा...सुरक्षा संभव है। शारीरिक, वाचिक एवम् मानसिक योगों में से कोई भी योग अपने कार्य के लिए उत्तम होता है। ऋषभनारायण संघयण के बिना केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। शास्त्रों में उल्लेखित वचनों से ज्ञानीजनों को पर्याप्त मात्रा में अनुभव प्राप्त होता है। फलतः उसने उन्हें शारीरिक बल विकसित करने का रहस्य ज्ञात होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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