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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... एक निवेदन मातभमि कालन्द्रो में आयोजित संघ की सामान्य सभा की व्यवस्तता के बीच अचानक मेरे मित्र व अन्नय सहयोगी श्री एच. एम. शाह, आदोनी के माध्यम से राष्ट्रसंत एवं जैन मनीषी परमादरणीय आचार्य प्रवर श्रीमद पदमयागरसूरीश्वग्जी महाराज साहब एक पत्र मिला । आपश्री मीनमाल में चातुमासिक स्थिगवास कर रहे हैं। पत्र में आशीर्वाद के साथ ही समय निकालकर भीनमाल आने का संदेश था । अनायास ही मेरा मन पुलकित हो, उनके प्रति असीम भक्तिरस से सराबोर हो गया। आज से दो-तीन वर्ष पूर्व पूना में दर्शन वंदन का लाभ प्राप्त होने के पश्चात् यह प्रथम अवसर था आपश्री द्वारा संदेश पाने का । दो-तीन दिन पश्चात् गुरुदेव की सेवा में जव मैं उपस्थि हुआ तो आपश्रीने मुस्कराते हुए आशीर्वाद प्रदान कर मृदुभाषा में कहा : अच्छा ही हुआ, तुम आ गये विगत दो-तीन दिन से तुम्हारी ही प्रतीक्षा हो रही है । पूना भी पत्र प्रेषित किया __ भावविभोर हो, दर्शन-वंदन कर मैं नतमस्तक एक ओर खडा हो गया । मेग रोम-रोम गुरु दर्शन से प्रफ्फुलित हो गया । नयन बावरे बन, आपश्री के सौम्य मुख मंडल को एक टक निहारने में खो गये । तभी आपश्रीका बुलन्द आवाज कान पर पडा : जाओ । अरविंद सागरजी से मिल लो । उन्हें तुम से काम हैं । __ मैं आपश्री द्वाग बताये ग्थान की ओर मुडा तो गुरु-शिष्य की जोडी मुनिराज अरूणोदयसागरजी व मुनिश्री अरविंदसागरजी को सामने खडा पाया । मैं उनके पास गया और दर्शन-वंदन कर आसनीय हुआ । अल्पावधि तक विचार-विनिमय के अनन्तर एक ग्रंथ मेरे हाथ में थमाते हुए पूज्य अरविंद सागरजीने कहा : अरुणोदय फाउन्डेशनने भविष्य में हिंदी में उत्कृष्ट जैन साहित्य प्रकाशन करने का निश्चय किया है और उसका श्री गणेश पूज्यपाद योगनिष्ट आचार्य भगवंत श्रीमद् बुद्धि मागमूरिजी लिखित पाथेय के हिंदी अनुवाद से करने की भावना है । अतः आपको पाथेय के हिंदी अनुवाद की जिम्मेदारी वहन करनी होगी। श्रद्धेय मुनिश्रीका प्रस्ताव मेरे लिए सोने में सुहागे जैसा ही था । आज तक मैंने कई जैन ग्रंथों के अनुवाद, संकलन व संपादन किया है और भविष्य में करने का दृढ़ संकल्प है । वैसे इससे पूर्व श्रीमद पदमसागरमूरिजी महागज के आदेश पर मैंने हे नवकार महान व मीनसेन रित्र के हिंदी अनुवाद सम्पन्न किये हैं और यह तीमग For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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