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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थात्वं प्रसीद // 1 // निरस्यैवदेहादिसर्व स्वभावं सहस्रार्कतुल्ये सदानन्द पूर्णे / विशेतावके देवि रूपे मनोमे तथा त्वं प्रसीद प्रपन्ने परेशि // 2 // श्रुतीनां शिरोभिः स्तुते साररूपे परे सामरस्य स्व रूपे त्वदीये रहस्यशिव प्रोक्तशास्त्रस्य मातर्मनोधारणा निश्चला मे सदास्यात् // 3 // इदंताय सर्वमम्ब प्रसादात्तव श्रीगुरोश्चस्वरूपं यथाहं // निजानंदरूपे तथादेवि विद्यां कृपाः कटाक्षैः शिवे त्वं प्रसीद // 4 ॥प्रविष्ठं कृपातः प्रकाशात्मके ते पदाब्जे मनोनापसत् कदाचित् ततः कापिकारुण्यलिलाविलासे तथा स्वानुभावेन मह्यं प्रसीद // 5 // प्रबद्धोमनोलिर्मदी यस्त्वदीय पदाब्जे यदिस्यात्स्वभावातिरम्ये // तदान्यैरशेषैः शिवे मुक्त्युपायै रलंयोगयागादिकैर्भक्तिगम्ये // 6 // कर्तु ह्यकतु तथाचान्यथैव मातः प्रकर्तुच शक्तात्वमेका // इत्येव मत्वाशरणंगतस्ते मांत्राहि मांत्राहि कृपाईचित्ते // 7 // यद्य प्यहं त्रिपुरसुन्दरि कामयुक्तः क्रोधी खलः कपटयुग्विषयानुरक्तः // पापी तथापि शरणागतवत्सले त्वत्पादारविन्दयुगलं शरणं प्रपये // 8 // कृपाब्धिगुणाब्धिः सुखाब्धिः पराम्बा परप्रेमपाथोनिधिश्चन्द्रवका // महाविश्वसिन्धोः सदादीर्घ नौका // पुनमें पुनर्जल्पतोयांन्तु घस्राः // 9 // इमां श्रीजग जीवनिस्तारकौस्तुतिं यः पठेद्ध्यान सद्भावनिष्टः // सदाश्री पराम्बाप्रसादान्मनुष्यः पदं यात्यनौपम्यरम्यंतदीयम् // 10 For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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