________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (36) चित्रं निष्काममानसं कुरुते // 68 मजुदृगञ्चलमालां स्वरूपशोभाधिराजसत्कन्या श्यामसरोजोद्भूतां कामेश्वरवरोरसि क्षिपति // 66 // भ्रूयुगलाकृतिधनुषः कोटिविस्तृष्टं कटाक्षविशिखं ते / धैर्य कवचं शंभोः शतधा कुरुते परं चित्रम् // 70 // गंगां स्मितमिति मत्वा महेश्वरेणाम्बते शीर्षे // स्वे किंधृतासुघटते विष्णुपदी ह्यन्यथा तत्र // 71 // स्वजनं रक्षणकामा स्मेरविभूति हि दिक्षु विक्षिपति // तन्मुक्त्यर्थं प. रितो ग्रस्तं तृष्णापिशाचिन्या॥ 72 // संजीवित स्तव दृशा सहभू स्त्वदीयभ्रूचापसुन्दरदृगञ्चलबाणधारी कामेश्वरि त्व. दुपसंश्रितईशदग्ध ईशं विजित्य तव दास्यकरं कृतज्ञः॥ चकार इतिशेषः // 73 // एकानन्तानंदा शुद्धा बुद्धा हि चिद्रूपा // पूर्णा विश्वसिस्मृक्षोरिछाभिन्ना परेशस्य // 74 // सुकृतवृक्षफलं फलदं नृणां श्रुतिपयोनिधिरत्नमलौकिकम् // मम मनोरथसिद्धिसुरूपकं सकलमातुरिदं हि पदाब्जकम् // 75 // इतिश्री सौभाग्यरसमाधुरीस्तोत्रम् समाप्तम् // श्रीमछिवशक्तिस्वरूपिणी विजयतेतराम् // एकैवकाचिदमला निजलील यैव भक्तेष्वनुग्रहवशात्परमं स्वरूपम् शाक्तं च शैवमिति यद्विविधं सुधृत्वा रूपेण चोभयकयोस्त्रिशती जगाद ॥१॥श्रेयस्करी सकलतापहरीजनानां वांछार्थदा निगमसारवती प्रसिद्धा / नाम्नां शतत्रयवती त्रिशतीशिवायाः / जिह्वाग्रगा भवतु मे परदेवतायाः // 2 // For Private and Personal Use Only