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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाः तान् मृगयति इति मानमृगः सएवईंद्रः सएवतरणिस्त स्यप्रसिद्धम् // यागवलत्वंसर्वेप्राज्ञजना एवंकथयंति महदुर्गे ऽति रहसिवहुसमाः स्थित्वासच्चिदानन्दघन मूर्तेरन्वेषणं कृतं श्रीमजनकेनपुनश्चमानेमृगास्तेषांइन्द्रः दंडदातृत्वेनप्रसिद्ध प्रतिपक्षिजनान् स्वस्वकर्म जन्यंविपाकंदत्वापुनः प्रजापाल नात्मके कर्मणिस्थितोभवदिति यद्वाअमानोनाप्रतिषेधे इति मानौनिषेधवाचक शब्दो तावेवमृगौतयोरिन्द्रः निषेधवाच क शब्द नाशकः अत्यौदार्यतयारायवितरणेन // अतएवमा नक्षपानाशिनः // ॥कवित्त गणेशपुरीजीरेकयो हुो // देयसुवरन ध्यानकरके जिहांनकर्न सुवरननामसौन सुवनधामभौ / भ्रंगकीट ध्यानठान देयसुवरनजान सुवरनधाम भोरु सुवरन नामभौ // मानवारेकारनसो मानवारो कार्य मानौ सास्त्रनप्रमानमान मानके ललामभो / सूरिनसमान करि अरिनअमानकरी मानसुत है मैं तूअमान जसदाम भौ // 1 // रावराजा सोनसिंहजीरो कवित्त कविराजाजी मुरारदानजीरेकयो हुप्रो॥ परमपवित्रहो प्रसिद्ध सर्बपृथ्वीमें नैकनचरित्र ताहांदेषी ये दिठानोंसो / भनतमुरार हो स्वरूपविश्वपूषनको भूषन जिहानहूको दारिदको खोनौसौः वारवार सुकविसुनारदेख्यो For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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