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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य लंदनका और हिंदुस्थान दो वलातां का वही महा राणी करती हे हुक्म भी उसी का है और पती भी उस का उस के आधीन रहता है यह भी व्यवहार है अरु जो स्त्री पति के आधीन नहीं होय तो क्या फिकर है पुरुष कोई दूजा हो और स्त्री रूप दूसरा होवे जवतो हानिभी होवे परंतु प्राकृत स्त्री पुरुष जेलै तो वे दिव्य दंपतो नहीं है सोतो कहता ही चलाआताहुं के पराशक्ति अरु पाब्रह्म नाममात्र भिन्न है वस्तु एक ही है सदा अभेद एक रस रूप वही परा शक्ती नै रमणकी इछा करी तब दोरूप धारलीया तो फिर इस में हानी किसतरे आसक्ती है जगत का पालन पोषण मे भी कुछ भी स्त्री रूपका आधिक्य है श्रीमद्भगवान् शं. करखामीने कहा है के // तवस्वाधिष्ठाने हुतवहमधिष्ठा यनिरतं तम डे संवत जननी महतींतांचसमयां / यदालोके लोकान्दहति महति क्रोधकलिले दयादृष्टिस्तशिशिर मुपचा रंचरयति // 1 // शिव तमोगुणावछिन्न परमेश्वरांशजग को अपणे तृतीय नेत्राग्नितै घालता है संहार करता है। और तूं पीछा दयादृष्टि से शीतल उपचार करके फिर उत्पन्न करती है तो जगत के आराम तो ईश्वर का स्त्री रूप जेसा करता है वेसा पुंरूप ही और परमार्थ भी इनसे जेसा होता है तादृश और रूप से नहीं शीघ्र सिद्धी इनसै होती है जेसी स्वरूपांतर से नहीं होती कारण इस रूपमे मनोरंजन बोहोत होता है एकाग्रअका होता है और एका होणेसै ही सिद्धि है // विष्णवादिकांने भी पराशक्ति ही For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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