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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 127 ) सांत्रिगणादिदोनशाय से हरिहरादि भिरय्यपारेत्यादिश्च औरइनतीनां से कदापिपरासक्ति की उत्पत्ती कहि नहीं लिषी है और कई कल्प ब्रह्मा से रुद्र से शिव विष्णु सूरजगणे श से जगदुत्पत्ती लिषी है तो ईनांने शक्ति का आश्रय करके करी है वैसै पराशक्ति ने किसी का आश्रय करके नहीं करी लिषी है और नहीं अनुमान मै आवे है और ललिताजूने जैसे नृसिंहादि विष्णु का अवतारानकुं अपने हस्त के दस नख से प्रकटकिये तैसें रुद्र विष्णुनै पराशक्ति के अवतारान कुंभी कहीं प्रकट नहीं किये हैं // और परा. शक्ति की तो शिवादिनने बोहतसी जगे अपणा दुःख नि. बृत्यर्थ स्तुतीकी है अरु पराशक्ति ने कभी किसी की स्तुति नहीं करी है सो तो ई है परंतु इनका अवतारांने भी अपणी सहायता निमित्त कभी किसी की स्तुती नहीं करी है पराशक्ति स्वतंत्र है और शिव है सो पराशक्ति के परत है सो भगवत्पूज्यपाद श्रीशंकराचार्य स्वामी ने देवी का सौंदर्यलहरी नामक स्तुति है जिस में लिखा है अरु शिव जूके प्रकट किये हुवे रुद्रयामलादि प्रधान तंत्र चतुःषष्टि है 64 और यूंतो अगणित तंत्र है जिल में वर्णन शिवशक्ति का कीया है उसी के अनुसार श्रीशंकर स्वामी ने स्तुति की है जिस में कहा है व्यंजन सब शिवरूप ह और षोडशस्वर हे सोशक्ति रूपहै सो स्वरांका उच्चारण तो हलविगरही हो जाता है और हलका उच्चारण विगर स्वरांके नहीं होता इसलिये शिव शक्तिके परतंत्रहै इत्यादि बहुत प्रकारसै शिवकां शक्ति के आधीन लिखा शक्ति किसी के आधीन नहींहै इसीतरांसे सब For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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