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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होना विछिन्नरूपिणी // अनन्यभाता विरजा श० // 16 // तत्त्वं चासि पदव्यक्ताऽयमात्मा ब्रह्मविश्रुता // ब्रह्मास्म्यहं तथारूपा श० // 17 // अहं ब्रह्मास्यहं ब्रह्मास्म्यहं ब्रह्म विमर्शिता // गुरुवक्तोदिता या सा श० // 18 // सर्वखल्वि दमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्॥श्रीमद्भागवतं रूपं श० 19 // चराचराखिलाधारात्रिंशत्तत्वरूपिणी // तत्वातीता परात्मा सा श०॥ 20 // इतिस्तोत्रं महापुण्यं परा ध्यात्वा पठेन्नरः॥ स्तोत्रार्थमानसोनित्यं सोभीष्टफलमानयात्॥ 21 // वेदवेदा न्तवाक्यार्थमन्त्रतन्त्रार्थसंयुतम् // स्तोत्रं पुनः पुनर्जप्त्वा सदाभ्यासी सुखीभवेत् // 22 // इति श्रीचरणशरणदस्तोत्रं समाप्तम् // ॐ अत्यन्तसुन्दराकारे सुकुमारे मनोहरे // वाङ्मनातीत रूपे मे वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 1 // कोटिसूर्यसमप्रख्ये को टिशीतांशुशीतले // प्रेमाम्बुधौ गुणनिधौ वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 2 // आभिषेचनिके नित्यमङ्गले नित्यशोभने // दयाभू तहृदये वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 3 // कमलाकिङ्करीकोटिषेविते नित्यभास्करे // भक्तमानसगे नित्यं वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 4 // चतुर्दोर्लतिके पाशगृणिबाणधनुर्धर ॥कस्मिंश्चिदरुणे धान्नि वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 5 // परमेश्वरानुभवे परमे शैकताइते श्रुतिशेखरसंगीते वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 6 // दयाहगन्तपातनदलिताशेषकश्मले॥ परप्रेमास्पदीभूते वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 7 // भक्तसंजीवने स्वछे सर्वानुल्लयशासने / स्मरणाच्छीघवरदे वर्धतां प्रेमवर्धताम् // ८॥प्रेमाष्टकमि For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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