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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 125) और विधि तो एसा लिखा है के मूलाधारादि ब्रह्मरंध्रांतचतुर्दल कम लादि सहस्रदल कमलपर्यन्त मै गणेशादि श्री परमेश्वर रूपकी गुरुनाथस्थित है तिनका शास्त्र में लिखा है उस मुजब ध्यान करके यथा विभाग इकीस हजार छवसो स्वासात्मक अजपामंत्रका संकल्प करिके जो नित्य अर्पण करे असक्त होय तो शिरसि ब्रह्मरंध्रस्थ सहसूदल कमल कर्णिकामध्य वर्तिनी श्रीगुरु पादुका के ही समर्पणकरे अर्पण संकल्प इसतरै करणा मयाद्यपूर्वेयुरहो रात्रोच्चारतमुत्स्वास निखासात्मकं षट्शताधिकमेकविंशतिसहस्रसं ख्याक मजपाजप ब्रह्मरन्ध्रस्थसहस्रदल कर्णिका मध्य वर्तिन्यै श्री गुरु श्री पादुकायैनमः दूसरे दिनका संकल्प इसी रीति से करणा अद्य श्रीसूर्योदय मारभ्या होरात्रैणोच्चरित मुत्स्वास निस्वासात्मक षट्शताधिकमेकविंशति सहस्र सं. ख्याकमजपाजप महंकरिरष्ये // इस मंत्र रूप संकल्प करिके इकवीस हजार छयसो स्वसात्मक अजपा गायत्री मंत्र श्रीगुरुपादुका के समर्पण करणे सै सायुज्य मुक्ति प्राप्त होती है एसा महात्म इस महामंत्र का है अरुये सब मंत्रो में श्रेष्ट है इस के आराधन में कुछ क्रिया कलाप नहीं है केवल अंतर मुख होकर नित्यगुरूक्त विधि से अ. भ्यास करे पद्मासन बांधकर नासाग्र दृष्टि रखकर दो अक्षरां का चिन्तवन करै अरु अक्षरां के वीचमें कुंभक सहज सूक्ष्मरहता है तिन का वधावै फिर तो क्याकेणा है परंतु यह भाभ्यास नहीं जानपड़े तो केवल युग्माक्षर कम से For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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