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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 52/पाण्डुलिपि-विज्ञान स्याही श्री गोपाल नारायण बहुरा के शब्दों में 'स्याही' विषयक चर्चा की भूमिका यों दी जा सकती है-- यों तो ग्रन्थ लिखने के लिए कई प्रकार की स्याहियों का प्रयोग दृष्टिगत होता है परन्तु सामान्य रूप से लेखन के लिए काली स्याही ही सार्वत्रिक रूप में काम में लाई गई है । काली स्याही को प्राचीनतम संस्कृत में 'मषी' या 'मसि' शब्द से व्यक्त किया गया है । इसका प्रयोग बहुत पहले से ही शुरू हो गया था। जैनों की मान्यता है कि कश्यप ऋषि के वंशज राजा इक्ष्वाकु के कुल में नाभि नामक राजा हुआ । उसकी रानी मरुदेवी से ऋषभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । यह ऋषभ ही नाभेय ऋषभदेव नाम से जैनों में आदि तीर्थङ्कर माने जाते हैं । कहते हैं कि आदिनाथ ऋषभदेव से पूर्व पृथ्वी पर वर्षा नहीं होती थी, अग्नि की भी उत्पत्ति नहीं हुई थी, कोई कँटीला वृक्ष नहीं था और संसार में विद्या तथा चतुराईयुक्त व्यवसायों का नाम भी नहीं था । ऋषभ ने मनुष्यों को तीन प्रकार के कर्म सिखाये-1. असिकर्म अर्थात् युद्ध विद्या, 2. मसिकर्म अर्थात् स्याही का प्रयोग करके लिखने-पढ़ने की विद्या, और 3. कृषि कर्म अर्थात् खेती-बाड़ी का काम । इसे चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का ही रूप माना जा सकता है । अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर का निर्वाण विक्रम संवत् से 470 वर्ष पूर्व और ईसा से 526 वर्ष पूर्व माना गया है । कहते हैं कि इससे 3 वर्ष आठ मास और दो सप्ताह बाद पाँचवें आरे का प्रारम्भ हुआ है जो 21 हजार वर्ष तक चलेगा। इससे मषी कर्म के प्रारम्भ का अनुमान लगाया जा सकता है । मसि, मशि या मषी का अर्थ कज्जल है । 'मसी कज्जलम्', मेला मसी पत्रांजन च स्यान्मसिद्ध योरिसि त्रिकाण्डशेषः' । काली स्याही के निर्माण में भी कज्जल ही प्रमुख वस्तु है । इसीलिये स्याही के लिए भी मषी शब्द प्रयुक्त हुआ है । काली स्याही बनाने के कई नुस्खे मिलते हैं। उनमें कज्जल का प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है । एक बात और भी ध्यान में रखनी चाहिये कि ताड़-पत्र और कागज पर लिखने की काली स्याहियाँ बनाने के प्रकारों में भी अन्तर है । ताड़पत्र वास्तव में काष्ठ जाति का होता है और कागज की बनावट इससे भिन्न होती है । इसीलिए इन पर लिखने की स्याही के निर्माण में भी यत्किंचित् भिन्नता है। स्याही बनाने में कज्जल और जल के अतिरिक्त अन्य उपकरणों का मिश्रण करने की कल्पना बाद की होगी । प्राचीन उल्लेखों में केवल जल और कज्जल के ही सन्दर्भ मिलते हैं। यह भी हो सकता है कि इन दोनों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं की गणता रही हो । पुष्पदन्त विरचित महिम्नःस्तोत्र के एक श्लोक में स्याही, कलम, दवात और पत्र का सन्दर्भ है : असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमुर्वी । लिखति यदि गृहीत्त्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणानमीश पारं न याति ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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