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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 370/पाण्डुलिपि-विज्ञान - 1 2 3 -- कागज को पुस्तकें । इस ग्रन्थागार की ये पुस्तकें बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं : 'शाहनामा', यह फिरदौसी की कृति है । यह 500 पृष्ठों का ग्रन्थ है। इसमें 52 चित्र हैं। पृष्ठों के बीच में जो चित्र हैं वे सोने और नीलम के रंगों से बनाये गए हैं । यह कृति काबुल-कंधार के सूबेदार अली मर्दानखाँ ने अकबर को भेंट में दी थी। सिकन्दरनामा 17वीं शती से पूर्व की कृति है । लेखक हैं-निजामी । इसमें भी चित्र हैं । सोने और नीलम के रंगों का प्रयोग इनमें भी है। 'मुताउल हिन्द' अकबर के हकीम सलामत अली की कृति है । यह विश्व कोष है। इसमें दर्शन, गणित और भौतिक विज्ञान, रसायन और संगीत पर भी अच्छी सामग्री है। यह ताड़पत्र की पाण्डुलिपियों के लिए प्रसिद्ध है । 448 पाण्डुलिपियाँ महामहोपाध्याय ह० प्र०, शास्त्री जी ने बतायी थी, सन् 1898-99 ई० में। इसमें 5000 पाण्डुलिपियाँ शास्त्री जी ने बतायी हैं। नेपाल : दरबार पुस्तकालय 47. नेपाल : यूनीवर्सिटी पुस्तकालय 48. पूना : भंडारकर रिसर्च 49. 1320 ई० इंस्टीट्यूट विजयनगर 50. 14वीं शती मिथिला = तिरहुल तुंगभद्रा के तट पर । यादव वंश के राज्य-काल में विद्या का केन्द्र । प्रसिद्ध वैदिक भाष्यकार सायणाचार्य यहीं के राजा के मन्त्री थे। यह हिन्दू विद्या का केन्द्र था। यहाँ के ब्राह्मण राजाओं के समय में महाकवि मैथिल कोकिल विद्यापति हुए थे । राजा का नाम था शिवसिंह । यह चैतन्य महाप्रभु का प्रादुर्भाव स्थल . . है । यह भी हिन्दू-विद्या केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित हुअा। नदिया/नवद्वीप 51. 14वीं-15वीं शती For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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