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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org महाकवि भूषरण 9. इनकी प्राप्त सभी रचना वीररस की हैं । 11. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण / 305 मुरलीधर कवि भूषरण 9. इनकी रचना में शृंगार और कृष्णचरित का प्राधान्य है । 10. रचना अध्याय अन्त की कथा या ग्रंथ के अन्त की पुष्पिका बहुत सामान्य हैं, अतः 'कविभूषरण' की पद्धति से बिल्कुल भिन्न है । ये शिवाजी के भक्त थे, शिवाजी को अवतार मानने वाले । कोई-कोई कृति किसी कवि विशेष के नाम से रची गई होती हैं पर उस कवि का ऐतिहासिक अस्तित्व कहीं न मिलने पर यह कह दिया जाता है कि यह नाम ही बनावटी हैं । पृथ्वीराज रासो को अप्रामाणिक, 16वीं - 17वीं शती का और प्रक्षिप्त मानने के लिए जब विद्वान् चल पड़े तो, यह भी किसी ने कह दिया कि इतिहास से किसी ऐसे चन्द का पता नहीं चलता जो पृथ्वीराज जैसे सम्राट का लँगोटिया यार रहा हो और पृथ्वीराज पर ऐसा प्रभाव रखता हो, जैसा रासौ से विदित होता है और जो सिद्ध कवि हैं । अतः यह नाम मात्र किसी चतुर की कल्पना का ही फल हैं, किन्तु एक जैन ग्रंथ में चन्दबरदायी के कुछ छन्द मिल गये तो मुनि जिनविजय जी ने यह मिथ्या धारणा चन्दबरदायी का अस्तित्व वो बाह्य साक्ष्य से सिद्ध हो गया। हुआ है। खण्डित कर दी । तो अब रासो फिर भी खटाई में पड़ा 10. इनकी पुष्पिकाओं में प्राश्रयदाता का विशद वर्णन तथा अपने पूरे नाम मुरलीधर कवि भूषरण के साथ पिता के नाम का भी उल्लेख है । 11. ये कृष्ण-भक्त थे । इसी प्रकार की समस्या तब खड़ी होती है जब एक कवि के कई नाम मिलते हैंजैसे महाकवि सूरदास के सूरसागर के पदों में 'सूरदास' 'सूरश्याम', 'सूरज', 'सूरस्वामी' आदि कई छापें मिलती हैं। क्या ये छापें एक ही कवि की हैं, या अलग-अलग छाप वाले पद अलग-अलग कवियों के हैं । यद्यपि आज विद्वान् प्रायः यही मानते हैं कि ये सभी छापे 'सूरदास' की हैं, फिर भी, यह समस्या तो है ही और इन्हें एक कवि की हो छापें मानने के लिए प्रमाण और तर्क तो देने ही पड़ते हैं । 'नलदमन' नामक एक काव्य को भी सूरदास का लिखा बहुत समय तक माना गया, किन्तु बाद में जब यह ग्रन्थ प्राप्त हो गया तब विदित हुआ कि इसके लेखक सूरदास सूफी हैं, और महाकवि सूरदास से कुछ शताब्दी बाद में हुए । अब यह ग्रन्थ क० मुं० हिन्दी तथा भाषा - विज्ञान विद्यापीठ, आगरा विश्वविद्यालय, आगरा से प्रकाशित भी हो गया है । अतः हमने देखा कि कितने ही प्रकार से 'कवि' कौन है या कौनसा है की समस्या भी पांडुलिपि - विज्ञानार्थी के लिये महत्त्वपूर्ण है । एक और प्रकार से यह समस्या सामने प्राती है : कवि राज्याश्रय में या किसी अन्य व्यक्ति के आश्रय में है । ग्रन्थ रचना कवि स्वयं करता है, पर उस कृति पर नाम - छाप अपने आश्रयदाता की देता । इसके कारण यह निर्धारण करना आवश्यक हो जाता है। कि वस्तुतः उसका रचनाकार कौन है ? For Private and Personal Use Only उदाहरण ' के लिये 'शृंगारमंजरी' ग्रन्थ है, कुछ लोग इसे 'चिन्तामरिण' कवि की रचना मानते हैं, कुछ उनके प्राश्रयदाता 'बड़े साहिब' प्रकबर साहि की । इस सम्बन्ध में 1. सत्येन्द्र ( डॉ० ) --ब्रज साहित्य का इतिहास, पृ० 366 ।
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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