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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 278/पाण्डुलिपि-विज्ञान - डी. सी. सरकार का विवरण टिप्पणियां लिपि-विज्ञान से भीमकारों का समय बाद का बैठता है। सरकार ने यह भी दिखाया है कि भांडारकर ने 100 और 200 के जो प्रतीक इन लेखों में आये हैं उन्हें पढ़ने में भूल कर दी हैलु-100 और लू-200 । ये 'लु' को 'लू' पढ़ गये हैं। 5. अब सरकार महोदय एक अन्य ज्ञात काल से इस अज्ञात की गुत्थी सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए इन्होंने धृतिपुर और वंजुलवक के भंज राजाओं का आधार लिया है, उनमें से रणभंज को सोमवंशी सम्राट महाशिव गप्त ययाति प्रथम (970-1000 ई०) का समकालीन सिद्ध किया है और उधर पृथ्वी महादेवी उपनाम त्रिभुवन महादेवी द्वितीय को उक्त सोमवंशी सम्राट् की पुत्री बताया है। इस भौमकर शती के लेखों का एक संवत् 158 है। यह भौमकर संवत् है। पृथ्वी महादेवी के बौड (Baud) ये समस्त तर्क और युक्तियाँ ज्ञात प्लेट का संवत् 158 और उसके पिता सन् संवतों के समसामयिक संवतों की सोमवंशी महाशिवगुप्त ययाति प्रथम स्थापना कर उनसे भोमकारों के संवत् का अपने राज्य के नवम् वर्ष का दान- का सम्बन्ध बिठाकर इस अज्ञात संवत् लेख सरकार ने प्रायः एक ही समय के प्रारम्भ को ज्ञात करने के लिए दिये के माने हैं । यह नवम् राज्य-वर्ष सन् गये हैं। 978 ई० में पड़ता है। अतः भौम- ___इसमें कोई सन्देह नहीं कि कई ज्ञात कार संवत् का प्रारम्भ इसमें से 158 सम्बन्धों की सन्धि बिठाकर अज्ञात की पृथ्वी महादेवी के लेख का वर्ष घटा समस्या हल करने की पद्धति महत्त्वपूर्ण देने से 820 ई० प्राता है । यही सन् अनुमानतः भौमकार संवत् के प्रारम्भ का सन् हो सकता है, इसके बाद नहीं। 6. अन्त में, सरकार ने शत्रु भंज के लेख 6. उक्त ऐतिहासिक घटना और राज्य में आये विस्तृत तिथि-विवरण को कालों के साम्यों से जो वर्ष मिलता है For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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