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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 262 / पाण्डुलिपि - विज्ञान आवश्यक है कि पांडुलिपि - विज्ञानार्थी को न जाने कब किस सन् संवत् से साक्षात्कार हो जाय । सप्तर्षि संवत् लौकिक-काल, लौकिक-संवत्, शास्त्र-संवत्, पहाड़ी-संवत् या कच्चा - संवत् । ये सप्तर्षि-संवत् के ही विविध नाम हैं : इसे सप्तर्षि - पंजाब में भी था । आधार पर कहा गया है । ये इस सप्तर्षि - संवत् काश्मीर में प्रचलित रहा है । पहले संवत् सप्तर्षि (सातों तारों के विख्यात मंडल) की चाल के सप्तर्षि 27 नक्षत्रों में से प्रत्येक पर 100 वर्ष रुकते हैं । प्रकार 2700 वर्षों में ये एक चक्र पूरा करते हैं । यह चक्र काल्पनिक ही बताया गया है । फिर नया चक्र आरम्भ करते हैं । इस संवत् को लिखते समय 100 वर्ष पूरे होने पर शताब्दी का अंक छोड़ देते हैं, फिर 1 से आरम्भ कर देते हैं। इस संवत् का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और इसके महीने पूर्णिमांत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि उत्तरी भारत में विक्रम संवत् के होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसका अन्य संवतों से सम्बन्ध इस प्रकार है : शक से - शताब्दी के अंक रहित सप्तर्षि-संवत् में 46 जोड़ने से शताब्दी के अंकरहित शक (गत ) संवत् मिलता है। 81 जोड़ने से चैत्रादि विक्रम (गत ), 25 जोड़ने से कलियुग (गत ), और 24 या 25 जोड़ने से ई० सं० आता है । कलियुग - संवत्' भारत-युद्ध - संवत् एवं युधिष्ठर संवत् भी यही है : यह सामान्यतः ज्योतिष ग्रन्थों में लिखा जाता है, पर कभ-कभी शिलालेखों पर भी मिलता है । बुद्ध-निर्वाण सवत् इसका प्रारम्भ ई०पू० 3102 से माना जाता है । चैत्रादि गत विक्रम संवत् में 3044 जोड़ने से, गत शक संवत् में 3179 जोड़ने से, और ईसवी सन् ये 3101 जोड़ने से गत कवियुग संवत् ग्राता है । J. बुद्ध - निर्वाण के वर्ष पर बहुत मतभेद हैं। पं० गौरीशंकर हीराचन्द श्रभाजी 487 ई०पू० में अधिक सम्भव मानते हैं । अतः बुद्ध-निर्वारण संवत् का प्रारम्भ 487 ई०पू० से माना जा सकता है । बुद्ध-निर्वाण-संवत् का उल्लेख करने वाले शिलालेखादि संख्या में बहुत कम मिले हैं। बार्हस्पत्य-संवत्सर ये दो प्रकार के मिलते हैं एक 12 वर्ष का दूसरा 60 वर्ष का । कलियुग - संवत् भारत-युद्ध की समाप्ति का द्योतक है और युधिष्ठिर के राज्यारोहण का भी । अतः इसे भारत युद्ध - सवत् एवं युधिष्ठिर संवत् कहते हैं । कलियुग नाम से यह न समझना चाहिये कि इसी संवत् से कलि आरम्भ हुआ । कलियुग कुछ वर्ष पूर्व आरम्भ हो चुका था । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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