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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण/247 काल-गणना के लिए अपने राज्याभिषेक के वर्ष का उल्लेख कर देता है। इस प्रकार को 'राज्यवर्ष' नाम दे सकते हैं। अशोक के लेखों में केवल राज्याभिषेक के 'वर्ष' का आठवाँ, बारहवाँ, बीसवाँ वर्ष मादि दिया हुआ है। शुंगों के शिलालेखों में भी 'राज्यवर्ष' ही दिया गया है। आन्ध्रों के शिलालेखों में 'काल-संकेत' में कुछ विस्तार पाया है। उदाहरणार्थ : गौतमी पुत्र मातकरिंग के एक लेख में काल-संकेत यों है "सबछरे, १० + ८ कस परवे २ दिवमे" इसका अर्थ हुया कि 1 8वें वर्ष में वर्षा ऋतु के दूसरे पान का पहला दिन । यहाँ 18वां वर्ष गौतमी पुत्र सातकरिण के राजत्व-काल का है। इसमें केवल राज्याभिषेक वर्ष-गणना का ही उल्लेख नहीं वरन् ऋतु पक्ष तथा दिन या तिथि का भी उल्लेख है। 'सबच्छर' संवत्सर शब्द वर्ष के लिए पाया है। इस समय भी राज्य वर्ष का ही उल्लेख मिलता है, यों तिथि-विषयक अन्य ब्यौरे इसमें हैं। ऋतुओं का उल्लेख है, मास का नहीं। पाख (पक्ष) का उल्लेख है, प्रथम या द्वितीय पाख का। दिवस का भी उल्लेख है । तब महाराष्ट्र के क्षहरात और उज्जयिनी के महाक्षत्रपों के शिलालेख आते हैं। इन्होंने ही पहले ऋतु के स्थान पर मास का उल्लेख किया "बसे 40+2 वैशाख मासे' इन्होंने ही पहले मास से बहुल (कृष्ण) या शुद्ध (शुक्ल) पक्ष का सन्दर्भ देते हुए तिथि दी "वर्ष द्विपंचाशे 50+2 फगुग बहुलम द्वितीय वारे ।" इस उद्धरण में 'वार' शब्द का भी पहले-पहल प्रयोग हुया है, दिवस प्रादि के लिए, 'मार्ग शीर्ष बहुल प्रतिपदा' में 'प्रतिपदा' या 'पड़वा' तिथि है, कृष्ण अथवा बहुल पक्ष की । इनके किसी-किसी शिलालेख में तो नक्षत्र का मुहूर्त तक दे दिया गया है, यथा :---- बैशाख शुद्ध पंचम-धन्य तिथौ रोहिणी नक्षत्र मुहूर्ते" पहले इन्हीं के शिलालेखों में नियमित संवत् वर्ष का उल्लेख हुग्रा, और उसके साथ राज्यवर्ष का उल्लेख भी कभी-कभी किया गया, यथा : श्री-धरवर्मणा........स्वराज्याभि वृद्धि करे वैजयिके संवतत्सरे त्रयोदशमे । श्रावण बहुलस्य दशमी दिवसं पूर्वक मेत....20+ 1 अर्थात् श्रीधरवर्मा के विजयी एवं समृद्धिशाली तेरहवें राज्य वर्ष में और 201 वें (संवत्) में श्रावण मास के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन....' विद्वानों का मत है कि राज्यवर्ष के अतिरिक्त जो वर्ष 201 दिया गया है वह शक संवत् ही है। यह द्रष्टव्य है कि 'शक' या 'शाके' शब्द का उपयोग नहीं किया गया, केवल 'वर्ष या संवत्सरे' से काम चलाया गया है। 1. अशोक के अभिलेख प्राचीनतम अभिलेख हैं। बस एक शिलालेख ही ऐमा प्राप्त हुआ है जो अशोक मे पूर्व का माना जाता है। यह लेख अजमेर के अजायबघर में रखा हुआ है और बदली से प्राप्त हुआ था। इसमें भी दो पंक्तियों में काल संकेत हैं । एक पंक्ति में 'वीराय भगवतं' और दूसरी में 'चतुरासीति बम' । निस्कर्षत: यह वीर या महावीर के निर्वाण के चौरासीवें वर्ष में लिखा गया। अशोक पूर्व का लेख ओझाजी द्वारा विशिष्ट बताया गया है क्योकि यह वीर-निर्वाण से काल-गणना देता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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