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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 236/पाण्डुलिपि-विज्ञान X. X--X-- - पं.ग्रा.चा.की.पु. र मा X -X - -.- .-.-- -- X 4 .- -.-..-....-..-.- X । अ.व.भ. म.म् उक्त चित्र में x गुगा का चिह्न यह बताता है कि यह प्रति प्राप्त नहीं हुई है किन्तु उपलब्ध प्रतियों के माध्यम से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ऐसी प्रति होनी चाहिए। - तीर का यह चिह्न यह बताता है कि तीर शीर्ष जिस प्रति की ओर है उस पर उस प्रति का प्रभाव है, जिससे तीर प्रारम्भ होता है। (1) पं० समूह का पाठ 'स' समूह का अथवा उसके किसी पूर्वज का ऋणी नहीं है। इसलिए इन दोनों समूहों का जिनमें पं० प्रा० चा० की० पु० तथा 'या' प्रतियाँ आती हैं, पाठ-साम्य मात्र पाठ की प्रामाणिकता के लिए साधारणतः प्रामाणिक माना जाना चाहिये । ___ (2) जिन विषयों में म०प० तथा स० तीनों समूहों में पाठ-साम्य हैं, उनकी प्रामाणिकता स्वतः सिद्ध मानी जानी चाहिये । (3) जिन विषयों में म० तथा प० समूह एकमत हों और स० भिन्न हो, अथवा म. तथा स० समूह एकमत हों, और प० समूह भिन्न हो, उन विषयों में शेष समस्त बाह्य और अन्तरंग सम्भावनाओं के साम्य से ही पाठ-निर्णय करना चाहिये । बाह्य और अन्तरंग सम्भावनाएँ पाठ की प्रामाणिकता की कसौटी बाह्य और अन्तरंग सम्भावनाएँ हैं । संदिग्ध स्थलों के शब्दों या चरणों की प्रामाणिकता के लिए अन्तरंग साक्ष्य तो मिलता है वैसे ही शब्द अथवा चरणों की ग्रन्थ के अन्दर ग्रावृत्ति के द्वारा अन्यत्र कहाँ', किस-किस स्थान For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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