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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भरी भोज "भाजि' (भाजई) नहीं सारि "भागि भरि मल मान नहीं लौह लागे । मुनि त पंग चहान कुं मुष जंपि इह 'विन' (वैन) । बोल सूर सामंत सब कहु एक शेन (सैन) । जलबिन भट सुभट भो करि पहि भुज 'विन' (वैन) ।" भये तोमर मतिहीन काय किली 'सि' (तै) ढिली 'ति' (ते) जीतु गंजनुं गंजि प्रपार हमीरह 'ति' (ते) जीतु चालुक विहरि संनाहः सरीरह 'ति' (ते) पहुषंग सू गहुँ इदु जिम गहि सू रहह, 'ति' (तै) गोरीय दल दहु वारि कट जिन बन दहह । तुव तु ग ते तब उचतम ति (ते) तो प्राशन मिलयू । भरे देव दानव जिम 'विर' (वर) चीतु । परमतत्त्व सूभि ( सूझइ) नृपति मगि मगि फरमानन ( फरमान ) ।" ति' (त) राषु हींदुग्रान गंज गौरी गाहंतु । तराषु जालौर चंपि चालूक बाहंतु । 'ते' राषु पगुरु भीम भटी 'दि' (द) मधु । 'तँ' राषु रणथंभ राय जादव 'सि' (सइ) हिथुः । 'कमा वही वहीं वही वही वही वही (मी० 73.4) ( मो० 77.1) **(822)** (मो० 99.2) (101-2) (10 105-10 (मो. 198:3) (मो० 116 1) (मो० 121 1) (To 548 3) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक पाठालोचन / 229 वही वही वही तुलना कीजिए मन्त्री का काम अन्धा देवी विदा गति । "हि (इ) 'कयमास' कहूँ कोइ जानहुँ । (मो० 32719-20) (मो० 424-1-5) (मो० 454, 45) इस प्रवृत्ति की पुष्टि भी इस प्रकार होती है कि कहीं कहीं पर 'इ' की मात्रा को 'ऐ' के रूप में पढ़ा गया है, यथा For Private and Personal Use Only विदूजन 'बोल' (बोलि) दिन धरा (मोष 40.54) 1 (3) कहीं कहीं 'इ' की मात्रा का प्रयोग 'प्रय' के लिए भी हुआ मिलता है, यथा- (मो० 229) (मो० 547) ~(#70 308·1-4) - (मोठ 33.4) * 1 K (मो० 74.4) (मो० 98.4)
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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