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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 220 / पाण्डुलिपि - विज्ञान 4: 3: लिपिकार 'क' 1: J 2 5: 2: 3 पहली पीढ़ी | दूसरी पीढ़ी तीसरी पीढ़ी चौथी पीढ़ी 1 1 1 2 3 4 5 इस प्रकार वंश-वृक्ष बढ़ता जायगा । प्रत्येक पाठ में कुछ वैशिष्ट्य मिलेगा ही । यह वैशिष्टय ही प्रत्येक प्रति का निजी व्यक्तित्व है । यह तो प्रतिलिपि की सामान्य सृजन का निर्माण प्रक्रिया है । पाठालोचन की आवश्यकता 2 2: पहली शाखा दूसरी शाखा तीसरी शाखा पाठालोचन की हमें आवश्यकता तब पड़ती है, जब हस्तलेखागार में एक प्रति उपलब्ध होती है, पर वह 'मूलपाठ' वाली नहीं - वह प्रतिलिपि है निम्नलिखित वर्ग की - (4) 2-3-1-5-2 www.kobatirth.org अर्थात चौथी पीढ़ी की दूसरी शाखा की 3 प्रतियों में से पहली प्रति की पांचवी प्रति की दूसरी प्रति । इसे यहाँ दिए वंशवृक्ष से समझा जा सकता है। मूलपाठ 3 मूलपाठ 2 लिपिकार 'ख' प्रथम स्थानीय प्रतिलिपियाँ 1 2 2 ( इनसे कोई प्रतिलिपि नहीं हुई) 3 3 तीसरी प्रति पहली प्रति दूसरी प्रति 14 4 1 4 1 पांचवी प्रति 2 दूसरी प्रति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपिकार 'ग' For Private and Personal Use Only 1 3 3 2 4
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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