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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 210/पाण्डुलिपि-विज्ञान 13-फ > क फ फ . फर फरड़ाटो आयो कर करड़ाटो आयो 14- >म। जय कुंण जाण । जम कुंण जाण । 15-म > स। मान निहोरा कित रह्या । सान निहोरा कित रह्या । 16-ह > ड। ह. है . है, 17-ड > द । हडूकियो > डकियो डेल्ह > देल्ह (सुप्रसिद्ध कवि का नाम) (ब) भ्रामक वर्ण प्रपतनपत । नपत त्रपत 2-हलन्त 'र' के लिए दो अक्षरों के बीच ...-'" चिह्न भी लिखा मिलता है (अनेक प्रतियों में) । सत्रहवीं शताब्दी की प्रतियों में अपेक्षाकृत अधिक । उदाहरणार्थ : घावा » धान्य मावा > मान्या इससे ये भ्रम हो सकते हैं :(अ) सम्भवतः धा और या को मिलाया गया है (धाख्या > धा-या)। (ब) सम्भवतः इन दोनों के बीच कोई अक्षर, मात्रादि छूट गया है। (स) सम्भवतः इसके पश्चात् शब्द समूह या अोल (पंक्ति) छूट गई है। इसको कोई चिह्न-विशेष न समझकर 'र' का हलन्त रूप (-) समझना चाहिए यह (-) अन्तिम अक्षर के साथ जुड़े हुए रूप में मिलती है, पृथक् नहीं। (स) प्रमाव से लिखे गये बर्ण इस शीर्षक के अन्तर्गत उल्लिखित ( अ ) विवादास्पद (Controversial) और For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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