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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 208/पाण्डुलिपि-विज्ञान (अ) विवादास्पद वर्ण (आ) भ्रान्त वर्ण (इ) प्रमाद से लिखे गये वर्ण (ई) विशिष्ट वर्ण चिह्न, उनका प्रयोग करना अथवा न करना तथा (उ) उदात्त-अनुदात्त-ध्वनि वर्ण पहले प्रत्येक के एकाध उदाहरण देकर इनको स्पष्ट करना है : (अ) विवादास्पद (Controversial) वर्णो के उदाहरण 1-थ 7 है। हु थ (सं. 1887 पोह सुदि 1 को लिखे गए च । य च । . बीकानेर परवाने से) अन्य परवानों में भी ऐसे ही रूप दोनों के मिलते हैं, थ 7, 8 सं. 1907 तक । प्रयोग के उदाहरण थाप> छाप/हेक थेक था > दा/छड़ी 7 थही थो , छो/खुणटुणो थुणथुणो 2-र>द । द>र। दार र १८ (ये रूप सभी प्रतियों और परवानों में) - चवरा > चवदा । चवदा > चवरा (4) (14) (ब) 3-थ > व । ब> थ। 1 थोबड़ो > बोबड़ो। (ग्रा) 1--छ > ब । व > छ (परनारी छुरी > बुरी । (परनारी दानीदरी) बंद > छंद । । बुरी) पद्घड़िया छद। छाप > बाप > अ तो म्हारे छाप का । औ तो म्हारे बाप का ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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