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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 178/पाण्डुलिपि-विज्ञान के सामने आ सकते हैं । अतः यह अपेक्षित है कि वह विश्व में लिपियों के उद्भव व विकास के सिद्धान्तों से परिचित हो । चित्र आदिम मानव ने पहले चित्र बनाए । चित्र उसने गुफाओं में बनाए । गुफाओं में ये चित्र अंधेरे स्थान में गुफा की भित्ति पर बनाये हुए मिलते हैं । इन चित्रों में वस्तु-बिम्ब को रेखाओं के द्वारा अंकित किया गया है। आदिम मानव के ये चित्र 20,0000 ई. पू. से 4000 ई. पू. के बीच के मिलते हैं। इन चित्रों को बनाते-बनाते उसमें यह भाव विकसित हुआ होगा कि इन चित्रों से वह अपनी किसी बात को सुरक्षित रख सकता है और ये चित्र परस्पर किसी बात के सम्प्रेषण के उपयोग में लिए जा सकते हैं। इस बोध के साथ चित्रों का उपयोग करने से ही वे चित्र 'लिपि' का काम देने लगे । यह लिपि 'बिम्ब-लिपि' थी। कई वस्तु-बिम्बों को एक क्रम में प्रस्तुत कर, उनसे उनमें निहित गति या कार्य से भाव को व्यक्त करने का प्रयत्न किया गया । यह विम्ब-लिपि चित्रलिपि की आधारभूमि मानी जा सकती है। ___ जब मानव बहुत-सी बातें कहना चाहता था, वह उन्हें उस माध्यम से प्रस्तुत करना चाहता था, जो चित्रों के आभास से उसे मिल गया था। इसका परिणाम यह हुमा कि वस्तु-बिम्ब छोटे बनाए जाने लगे, जिससे बहुत-से बिम्ब-चित्र सीमित स्थान में आ सकें और उसकी विस्तृत बात को प्रस्तुत कर सकें। अतः लेखन और लिपि के लिए प्रथम चरण है 1. बिम्ब-ग्रंकन देखिए---ये चित्र दला ग्रेज : जंगली बैल (प्रस्तर युग) da fairly done anthropo Meaning o' 1. यह चित्र 30,000 से 10,000 ई.पू. के हैं | Much research in this fteld has been done in recent years, and we now have a fairly definite knowledge of the art of some of the most primitive of mon known to the anthropologist (from 30,000 to 10,000 B.C.). -The Meaning of Art, p. 53. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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