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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 160 / पाण्डुलिपि - विज्ञान पृष्ठ के रूप-विधान से प्रकार-भेद सामान्य ग्रंथों में पाट या पाठ का भेद नहीं होता है । श्रादि से अन्त तक पृष्ठ एक ही रूप में प्रस्तुत किया जाता है । किन्तु जब पृष्ठ का रूप-विधान विशेष अभिप्रायः से बदला जाये तो वे तीन प्रकार के रूप ग्रहण करते मिलते हैं : त्रिपाट या त्रिपाठ इस पाट या पाठ में यह दिखाई पड़ता है कि पृष्ठ तीन हिस्सों में बाँट दिया गया है । बीच में मोटे अक्षरों में मूल ग्रंथ के श्लोक, उसके ऊपर और नीचे छोटे अक्षरों में टीका, टीबा या व्याख्या दी जाती है । इस प्रकार एक पृष्ठ तीन भागों में या पाटों या पाठों में बंट जाता है । इसलिए इसे त्रिपाट या त्रिपाठ कहते हैं । पंचपाट या पाठ जब किसी पृष्ठ को पाँच भागों में बाँटकर लिखा जाये तो पंचपाट या पाठ कहलाएगा । त्रिपाट की तरह इसमें भी बीच में कुछ मोटे अक्षरों में मूल ग्रन्थ रहता है, यह एक पाट हुआ । ऊपर और नीचे टीका या व्याख्या लिखी गई, यह तीन पाट हुए फिर दाईं और बाईं ओर हाशिये में भी जब लिखा जाये तो पृष्ठ का इस प्रकार का रूप-विधान पंचपाठ कहा जाता है । शूड या शु ंड अन्तिम पंक्ति सबसे छोटी होती कर लेता है । यह केवल लेखक जिस 'पुस्तक का पृष्ठ लिखे जाने पर हाथी की सूंड की भाँति दिखलाई पड़े वह 'सूंड पाठ' कहलाएगा। इसमें ऊपर की पंक्ति सबसे बड़ी, उसके बाद की पंक्तियाँ प्रायः. छोटी होती जाती हैं, दोनों ओर से छोटी होती जाती हैं । हैं और पृष्ठ का स्वरूप हाथी की सूंड का आधार ग्रहण की या लिपिकार की अपनी रुचि को प्रगट करता है । किन्तु इस प्रकार के ग्रन्थ दिखाई नहीं पड़ते । हाँ, किसी लेखक के अपने निजी लेखों में इस प्रकार की पृष्ठ रचना मिल सकती है । किन्तु 'कुमार सम्भव' में कालिदास ने श्लोक 1.7 में 'कुंजर बिदुशोरण:' से ऐसी ही पुस्तक की ओर संकेत किया है। इसी अध्याय में भूर्जपत्र शीर्षक देखिए । अन्य इस दृष्टि से देखा जाये तो लेखक की निजी पृष्ठ - रचना में त्रिकोण पाठ भी मिल सकता है । ऊपर की पंक्ति पूरी एक ओर हाशिये की रेखा के साथ प्रत्येक पंक्ति लगी हुई किन्तु दूसरी घोर थोड़ा-थोड़ा कम होती हुई अन्त में सबसे छोटी पंक्ति । इस प्रकार पृष्ठ त्रिकोण पाठ प्रस्तुत हो जाता है। अतः ऐसे ही अन्य पृष्ठ सम्बन्धी रचना - प्रयोग भी लेखक की अपनी रुचि के द्योतक हैं । इनका कोई विशेष अर्थ नहीं । त्रिपाट और पंचपाठ इन दो का महत्त्व अवश्य है क्योंकि ये विशेष अभिप्रायः से ही पाठों में विभक्त होती हैं । I सजावट के आधार पर पुस्तक-प्रकार जिस प्रकार से कि ऊपर पृष्ठ रचना की दृष्टि से प्रकार-भेद किये गये हैं उसी प्रकार से सजावट के आधार पर भी पुस्तक का प्रकार अलग किया जा सकता है । यह For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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